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आचार्य हेमचन्द्र
रूप से किया है । 'त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित' में कथा के प्रवाह में बीच-बीच में जैनधर्म के सिद्धान्तों का आकर्षक रूप से प्रतिपादन किया गया है । कहीं-कहीं गूढ दार्शनिक तत्वों को काव्य रूप में प्रस्तुत करने के फलस्वरूप शैली में शिथिलता एवं दुरूहता आ गयी है। पण्डित कवियों में स्थान- महाकवि कालिदास के पश्चात् महाकवि भारवि ने संस्कृत काव्य में एक नवीन 'शैली' को जन्म दिया। श्री बलदेव उपाध्याय ने उसे 'अलङकृत शैली' का नाम दिया। उसे कृत्रिम शैली भी कहते हैं । इस समय तक संस्कृत भाषा का क्षेत्र राजसभा तक ही सीमित रह गया था। राजसभा में उपस्थित पण्डित-समाज का मनोरंजन करना ही संस्कृत कवियों का कार्य हो गया था। अतः पण्डित जन के मनोरंजनार्थ पण्डित कवियों ने पाण्डित्यपूर्ण शैली,-अलङकृत शैली का आरम्भ किया । इस शैली के अन्तर्गत धीरे-धीरे भाषा ने अपनी सरलता छोड़कर क्लिष्ट शब्दों और दीर्घ समासों का आश्रय लिया । परिणामतः इन काव्यों में सरलता और स्वाभाविकता की कमी है। इन पण्डित कवियों ने काव्य का उद्देश्य बाह्य शोभा-अलङ्कार, श्लेष योजना एवम् शब्दविन्यासचातुरी तक ही सीमित कर दिया। अलङ्कार कौशल का प्रदर्शन करना तथा व्याकरण आदि शास्त्रों के नियमों के पालन में अपनी निपुणता सिद्ध करना ही उनका प्रधान लक्ष्य हो गया। काव्य का विषय गौण हो गया तथा भाषा और शैली को अलङ्कृत करने की कला प्रधान हो गयी।
इन काव्यों के रचयिता प्रायः राजाओं के आश्रित हुआ करते थे। ये राजा स्वयं साहित्यिक रुचि के व्यक्ति होते थे और उनमें वास्तविक गुणों की परीक्षा करने की क्षमता होती थी। राज-सभाओं के इस प्रभाव के कारण तत्का. लीन संस्कृत महाकाव्यों पर राजकीय जीवन की-उसको विलासिता तथा कृत्रिमता की स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है । भाव-प्रदर्शन का स्थान वैदग्ध्य-प्रदर्शन ने 1 -The famous वीतराग स्तोत्र of the great आचार्य हेमचन्द्र written
at the request of king Kumarpal is ostensibly a poem in praise of warate, the Passionless One; but it is also a poetical mannual of a doctrine divided into 20 parts ..............written in the direct and forcible language of knowledge and adoration. Aspects of Sanskrit Lietrature-s. K. Dey. In his poem called कुमारपाल चरित written in Sanskrit and