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हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ
हेमचन्द्र अपने समय के अद्भुत पण्डित थे और उनकी कीर्ति का प्रसार उस समय के संस्कृत शिक्षा के केन्द्र काश्मीर में भी हुआ था । महाकवि कालिदास की भाँति उन्होंने अपने काव्य का कथानक महाभारत अथवा पौराणिक स्रोत मे नहीं किन्तु ऐतिहासिक स्रोतों में लिया और उस पर अपनी प्रखर प्रतिभा की छाप बैठा दी । सचमुच उनके 'द्वयाश्रय' काव्य में काव्यन्सौन्दर्य तथा व्याकरण का मणिकाञ्चन संयोग है । उनकी कविता संस्कृत-साहित्य की अनुपम उपलब्धि है । शब्दों के सुन्दर विन्यास में, भावों के समुचित निर्वाह में, कल्पना की ऊँची उड़ान में तथा प्रकृति के सजीव चित्रण में इस महाकाव्य का काव्यजगत् में अद्वितीय स्थान है । स्तोत्र काव्य की उनकी कविता सहृदयों के मन को हरती है । शब्द और अर्थ को नवीनता उसे सचमुच 'एकार्थमत्यजतोनवार्थवटनाम्' बना देती हैं । 'द्वयाश्रय में एक ही विषय पर कई श्लोकों में वर्णन मिलेगा, पर सर्वत्र नवीन शब्दावली एवम् अभिनव पद-रचना उपलब्ध होती है । अतिशयोक्ति की उद्भावना में, उपमा, रूपक, यमक, अनुप्रास, विरोधाभास तथा श्लेष के समुचित प्रयोग में हेमचन्द्र अद्वितीय हैं । शब्दार्थ का सामञ्जस्य मनोहर है ।
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भट्ट के अतिरिक्त सम्भवतः महाकवि 'माघ' का 'शिशुपाल वध' भी हैमचन्द्र के सामने आदर्श रहा होगा। इनका सारा काव्य प्रौढ़ एवं उदात्त शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है । प्रत्येक वर्णन सजीव एवम् सालङ्कार है ।
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कुछ आलोचकों ने द्वयाश्रय काव्य पर कृत्रिमता और आडम्बर की अधिकता का दोषारोपण किया है पर उनके काव्य के विशेष प्रयोजन को ध्यान में रखते हुए यह कहना अनुचित न होगा कि उसमें वास्तविक काव्य के गुणों की कमी नहीं । पहले तो उन्हें व्याकरण के जटिल से जटिल नियमों के उदाहरण उपस्थित करते थे और दूसरे अपने काव्य के सर्वजन विदित कथानक में मौलिकता का सन्निवेश करना था । इसमें सन्देह नहीं कि इन उभय उद्देश्यों का एक साथ निर्वाह करना किसी भी कवि के लिए नितान्त कठिन कार्य है । इस कठिनाई के रहते हुए भी हेमचन्द्र के महाकाव्यों में रोचकता, मधुरता और काव्योचित सरसता का अभाव नहीं है । उनके प्रभावशाली संवाद, प्राकृतिक दृश्यों के मनोरम चित्रण, प्रौढ़ व्यञ्जना प्रणाली तथा वस्तु-वर्णन उत्कृष्ट कोटि के हैं । हेमचन्द्र के काव्य का मूल्याङ्कन श्री विंटरनीत्ज, वरदाचारी एवम् एस० के० डे० ने उचित