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________________ हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ '८१ निर्माण, (8) कुमारपाल का जैन धर्म में अतीव रुचि लेना, (१०) कुमारपाल का दैनिक कार्यक्रम, (११) नमस्कार मन्त्र में कुमारपाल की श्रद्धा तथा (१२) कुमारपाल के जीवन सम्बन्धी अन्य उल्लेख । संस्कृत 'द्वयाश्रय काव्य' को "चालुक्यवंशोत्कीर्तन" भी कहा जाता है। श्री पारीख महोदय ने अपने ग्रन्थ अणहिलपुर के चालुक्य वंश के इतिहास में संस्कृत 'द्वयाश्रय काव्य' का एवं 'कुमारपाल चरित' का बहुत उपयोग किया है। "परिशिष्ठ पर्वन्" में महावीर के पश्चात् जम्बुस्वामी से लेकर वज्रस्वामी तक का इतिहास दिया गया है। इसी में सम्राट श्रेणिक, सम्प्रति, चन्द्रगुप्त, अशोक, इत्यादि राजाओं का इतिहास भी गुथा हुआ है । हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व के अनुसार महावीर के निर्माण के १५५ वर्ष पश्चात् चन्द्रगुप्त मौर्य राजा हुआ। हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व में बतलाया गया है कि स्वयम्भव आचार्य ने अपने पुत्र मनक को अल्पायु जानकर उसके अनुग्रहार्थ आगम के साररूप देशवैकालिक सूत्र की रचना की। जिस प्रकार 'द्वयाश्रय काव्य' में ऐतिहासिक पक्ष सबल है उसी प्रकार आचार्य हेमचन्द्र के 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित में पौराणिक पक्ष सबल है । यद्यपि हेमचन्द्राचार्य स्वयं उसे एक महाकाव्य कहते हैं, फिर भी उसमें पौराणिक पक्ष सबल होने से वह एक जैन पुराण ही कहा जा सकता है । वैदिक पुराणों की सभी विशेषताएं इस पुराण में विद्यमान हैं । इस पुराण में तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक, एवं सांस्कृतिक जीवन का भी विशद् चित्र उपलब्ध होता है । संस्कृत के कथा साहित्य में भी 'परिशिष्ठपर्वन' का उच्च स्थान है। यह सत्य है कि उन कथाओं को जैन सम्प्रदाय के मतानुसार परिवर्तित किया गया है क्योंकि जैन सम्प्रदाय में अतीव आस्था होने के कारण उन्होंने वस्तुओं और घटनाओं को विशेष दृष्टिकोण से देखा है । यथानुसार चन्द्रगुप्त को एक जैन बताया गया है। इतना होने पर भी इस पुराण ने जैन संस्कृति में प्राचीन पौराणिक परम्परा के अभाव की पूर्ति की है। ऐतिहासिक एवं पौराणिक पक्ष के समान आचार्य हेमचन्द्र का भक्तिपक्ष भी सबल है । भगवान महावीर की स्तुति में उन्होंने प्रौढ़ दार्शनिक स्तोत्र लिखे । इससे सिद्ध होता है कि वे केवल शास्त्रों के निर्माता नहीं किन्तु सरस, सुरुचिपूर्ण काव्य के रचयिता भी हैं । भक्ति की दृष्टि से भी इन स्तोत्रों का उतना ही महत्व है जितना कि एक सुन्दर काव्य-कृति की दृष्टि से । इस सम्बन्ध में प्रो. जैकोबी का मत द्रष्टव्य है।
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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