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हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ
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पानी से चलेगा ? उत्प्रेक्षा का उदाहरण' -अणहिलपुर की स्त्रियाँ चरित्रवती हैं-चंचलता तो केवल सेना में हैं । अणहिलपुर के विद्वानों को विद्धता को देखकर सप्तर्षि भूलोक छोड़कर चले गये । सन्देह अलङ्कार का उदाहरणइस नगर के लोग मृगनयनियों की तरफ देखकर तर्क करते हैं-ये प्रत्यक्ष कोमल हाथ हैं अथवा कमल ? हाथों के नख जो रक्तिमा लिये हुए हैं, कमलान्तर्गत केसर तो नहीं है ? इसमें मृगीदृशाम् में रूपक अलङ्कार ही है। अतिशयोक्ति देखिये-राजा का प्रताप देखकर सूर्य भी मन्द पड़ गया। शायद उसका प्रताप राजा ने छीन लिया होगा। कथा का प्रभाव देखिये । उसमें नाद है, माधुर्य है स्वभावोक्ति के भी उदाहरण विद्यमान हैं ।
कुमारपाल चरित काव्य में स्वाभाविक माधुर्य और सौन्दर्य के रहने पर भी उपमा, उत्प्रेक्षा, दृष्टान्त, दीपक, अतिशयोक्ति, रूपक, आदि अलङ्कारों की सुन्दर योजना की है। उत्प्रेक्षा अलङ्कार के व्यवहार द्वारा कवि हेम ने सरसता के साथ काव्य में कमनीय भावनाओं का संयोजन किया है । वसन्त के आगमन के समय उसका स्वागत करने के लिए वन के द्वार पर कोयल मधुर ध्वनि में मंगल-पाठ कर रहीं है। यह मंगल-पाठ ऐसा मालूम होता है कि जैसे काम विह्वल प्रोषितपतिकाएँ अपने पतियों के स्वागत के लिए मधुर वाणी में स्तुतिपाठ करती हों । अतिशयोक्ति के प्रयोग द्वारा तथ्य का स्पष्टीकरण मनोरम
१-द्वयाश्रय सर्ग १ श्लोक ३६ -
दुग्घ स्म दुग्धं स्म निधत्थपार्यां पिधत्तदात्थस्म च दातचापि । तक्राणि वा दाद्ध किमम्बु दाढेत्याहुः समं सम्प्रति घोष वृद्धाः ।। २-४८ अमूपाणी मृदू पद्म किमु किं नु नरवा अमी।
केसराणीनि तर्कयन्ते जनरस्मिन्मृगीदृशाम् ॥ १-३६ २-द्वयाश्रय सर्ग २ श्लोक १७
त्वयामदीयोथ मया त्वदीयो राजन् प्रतापोनुकृत स्त्वयीति ।
तर्क कुलोभानुरुदेति मन्दमियाशयः संप्रति माद्विधाम् ॥ २-१७ ३-अन्ययोग व्यवच्छेद श्लोक १६ ४-कुमारपाल चरित सर्ग ३ श्लोक ३४ ।