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हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ
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आचार्य हेमचन्द्र का आराध्य केवल दर्शन और ज्ञान से नहीं अपितु चरित्र से भी अलङ्कृत है। इनके कान्य में चरित्र की भी भक्ति की गयी है। चरित्र और भक्ति का ऐसा समन्वय अन्यत्र दुर्लभ है। इस भक्ति का सम्बन्ध एक और बाह्य संसार से है, तो दूसरी ओर आत्मा से । इससे व्यक्तित्व में एक शालीनता आती है, व्यवहार में लोकप्रियता आती है, तथा आत्मा में परमात्मा का दिव्य तेज दमक उठता है। उन्होंने अर्हन्त और अर्हन्तप्रतिमा में कोई अन्तर स्वीकार नहीं किया है । चैत्य वन्दन के समान ही है । चैत्य यज्ञों के आवास-गृह हैं, उनकी भक्ति भगवान के भक्तों की ही भक्ति है। बहिरङगपक्ष-भाषा, शब्द-शक्ति,अलङ्कार, छन्द आदि____ भाषा - त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित की भाषा सरल, सरस एवं ओजमयी है । आख्यान साहित्य में इसका महत्वपूर्ण स्थान है । जैन दर्शन का विवेचन भी सुरुचिपूर्ण है। इसमें वर्णन की अधिकता है। वैदिक पुराणों के समान ही हेमचन्द्र के पुराण में भी अतिशयोक्ति शैली का स्वच्छन्दता से प्रयोग किया गया है। तीर्थंङकरों के अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन करने में आचार्य सिद्ध हस्त हैं। वैदिकों के कृष्णचरित्र के समान भगवान महावीर का चरित्र भी इतनी अद्भुत कथाओं से भरा है कि उसमें से वस्तुस्थिति का परिचय पाना अत्यन्त कठिन है। भगवान महावीर के मुख के आसपास सूर्य से सहस्र गुनी प्रभा है । उनका प्रतिबिम्ब नहीं गिरता । चरणों के नीचे सुवर्ण कमल उगे हुए हैं। एक करोड़ देव उनके परिवार में हैं । वे जहाँ जाते हैं सुवासित जलवृष्टि होती है, भूमि के कण्टक अधोमुख हो जाते हैं । आकाश में दुन्दुभी की ध्वनि होती है, आकाश में धर्मचक्र घूमता है, पुष्प वर्षां होती है और पक्षीगण उनकी प्रदक्षिणा करते हैं। उनका धर्म-ध्वज रत्नमय होता है । उनके शरीर में पसीना इत्यादि मल नहीं होते हैं । उनकी पलकें हिलती नहीं, चार मुख होते हैं, बाल और नाखून बढ़ते नहीं तथा वे आकाश में संचार करते हैं । तीर्थंकर जहाँ स्थित हाते हैं उस प्रदेश में शतयोजनपर्यन्त दुर्भिक्ष नहीं होता। अतिवृष्टि अथवा अनावृष्टि होती नहीं । उस राज्य में परचक्र का भय नहीं होता। उनका शरीर सुलक्षण, मल-रहित, रोग-रहित, सुगंधित तथा सुन्दर होता है। इस प्रकार सहजातिशय और देवकृत अतिशय उनमें होते हैं।
द्वयाश्रय काव्य में कुछ क्लिष्टता जरूर आ गयी है, किन्तु यह क्लिष्टता व्याकरण के नियमों को समझाने के कारण नहीं आई है, पाण्डित्य प्रदर्शन के लिए चित्र काव्य की रचना से क्लिष्टता आयी है। कहते हैं कि वे सप्तसन्धान