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________________ ७० .... - आचार्य हेमचन्द्र वीतराग स्तोत्र तथा द्वात्रिंशिका काव्य हेमचन्द्र के भक्ति काव्य के नमूने हैं। इनमें धर्म-तत्व के विवेचन के साथ भगवान महावीर के प्रति भक्ति की भावना ओतप्रोत है। अतः इन काव्यों में भक्ति रस है । भक्ति युक्त अन्तः करण से भगवान महावीर की शरण में जाने के लिए कहा है। वीतराग स्तोत्रों को पढ़ते समय शिवमहिम्न स्तोत्र एवम् रामरक्षा स्तोत्र का स्मरण हो आता है। हेमचन्द्र के भक्ति-काव्यों की सबसे बड़ी विशेषता है-उनकी शान्तिपरक्रता। कुत्सित परिस्थितियों में भी वे शान्त रस से नहीं हटे। उन्होंने कभी भी ओट में शृगारिक प्रवृत्तियों को प्रश्रय नहीं दिया। भगवान् पति की आरती के लिए भंगूठों पर भगवती पत्नी का खड़ा होना ठीक है, किन्तु साथ हा पीन स्तनों के कारण उसके हाथ की पूजा की थाली के पुष्पों का बिखर जाना कहाँ तक भक्तिपरक है ? राजशेखर सूरि के 'नेमिनाथ फागु' में राजुल का अनुपम सौन्दर्य अङिकत है किन्तु उसके चारों और एक ऐसे पवित्र वातावरण की सीमा लिखी गयी है जिससे बिलासिता को सहलन प्राप्त नहीं हो पाती। उसके सौन्दर्य में जलन जहीं, शीतलता है। वह सुन्दरी है, पर पावनता की मूर्ति है । उसको देखकर श्रद्धा उत्पन्न होती है । आचार्य हेमचन्द्र के 'परिशिष्टपर्वन्' में कोशा के मादक सौन्दर्य और कामुक विलास-चेष्टाओं का चित्र खींचा गया है। युवा मुनि स्थूलभद्र के संयम को डिगाने के लिए सुन्दरी कोशा ने अपने विशाल भवन में अधिकाधिक प्रयास किया, किन्तु कृतकृत्य न हुई । कवि को कोशा की मादकता निरस्त करना अभीष्ट था। अतः उसके रतिरूप और कामुक भावों का भङ्कन ठीक ही हुआ। तप की दृढ़ता तभी है, जब वह बड़े से बड़े सौन्दर्य के आगे भी दृढ़ बना रहे । कोशा जगन्माता नहीं, वेश्या थी। वेश्या भी ऐसी वैसी नहीं, पाटलीपुत्र की प्रसिद्ध वेश्या । यदि आचार्य हेमचन्द्र उसके सौन्दर्य को उन्मुक्त भाव से मूर्तिमन्त न करते तो अस्वाभाविकता रह जाती। उससे एक मुनि का संयम बलवान प्रमाणित हुआ है। निर्गुण और सगुण ब्रह्म की उपासना के रूप में दो प्रकार की भक्तियों से सभी परिचित हैं। किन्तु निराकार आत्मा और वीतराग साकार भगवान का स्वरूप एक मानने के कारण दोनों में जैसी एकता आचार्य हेमचन्द्र के काव्य में सम्भव हो सकी है वैसी अन्यत्र कहीं नहीं। अन्यत्र दोनों के बीच एक मोटी विभाजक रेखा पड़ी है। इनके काव्य में सिद्ध भक्ति के रूप में निष्कल ब्रह्म और तीर्थङ्कर भक्ति में सकल ब्रह्म का केवल विवेचन के लिए पृथक् निरूपण है, अन्यथा दोनों एक ही हैं।
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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