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________________ हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ संक्षेप में, भारवि, माघ और श्री हर्ष इस बृहत्त्रयी ने जो कार्य संयुक्त रूप ले कर दिखाया वह अकेले आचार्य हेमचन्द्र ने किया है। कालिदास की उपमा, भारवि का अर्थ-गौरव, दण्डिन् का पद-लालित्य, माघ को वर्णन निपुणता तथा नैषध की विस्तृत अलङकृत चमत्कृत शैली; ये सभी गुण हेमचन्द्र के काव्य में पाये जाते हैं । इतना ही नहीं उपर्युक्त सभी काव्यों से इनके काव्य में अधिक गुण हैं क्योंकि उपर्युक्त काव्य न तो शास्त्रीय काव्य हैं और न पुराण । हेमचन्द्र ने 'द्वयाश्रय' में शास्त्रकाव्य तथा त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित' पुराण लिखकर अपने साहित्य कर्तृत्व की परमावधि दिखायी है । इसके साथ धर्म-प्रचार का उद्देश्य भी सफल हुआ है ! इस धर्माचार्य को साहित्य-सम्राट कहने में अत्युक्ति नही है। युद्ध का वर्णन करते समय हेमचन्द्र ऐसी शब्दावली का प्रयोग करते हैं कि प्रत्यक्ष आँखों के सामने युद्ध होता-सा प्रतीत होता है, एवं वीर रस का स्फुरण हो जाता है । मूलराज का गृहरिपु पर आक्रमण 'रघुदिग्विजय' की बराबरी करता है। जहाँ वीर रस का उत्कृष्ट आविर्भाव होता है, वहीं साथ में ६ वें सर्ग में क्षेमराज द्वारा सरस्वती नदी के पास मण्डूकेश्वर पुण्य क्षेत्र में तप करने के वर्णन में शान्त रस का राज्य है । १०वें सर्ग में संतानरहित कर्ण-राज की संतान के लिए लक्ष्मीदेवी की उपासना होती है । तपस्या-भंग के लिए प्रलोभनार्थ अप्सराओं का आगमन होता है; किन्तु कर्ण तपस्या में स्थिर रहता है । पश्चात् एक अत्यन्त भयानक उग्र पुरुष कर्ण को खाने दौड़ता है। फिर भी कर्ण अविचलित रहता है। अन्त में लक्ष्मी प्रसन्न होती है तथा पुत्र होने का वरदान देती है । इस वर्णन में भयानक तथा अद्भुत रस का मिश्रण हुआ है । पहले तो भयानक रस का आस्वादन होता है तथा बाद में अद्भुत रस अनुभव में आता है। ११ वें सर्ग में जयसिंह के बाल्य वर्णन के समय वात्सल्य रस का प्रादुर्भाव हो जाता है। १७ वें सर्ग में शृगार का साम्राज्य फेल जाता है तथा बाल-ब्रह्मचारी, कट्टर धर्म-प्रचारक एवं साधनारत योगनिष्ठ मुनि इस प्रकार का उत्तान शृंगार का वर्णन करते है कि देखकर आश्चर्य होता है। पाँचवे सर्ग में ग्रहारि के साथ युद्ध करने के पश्चात् ग्रहारि के प्राण रक्षा के लिए उसकी पत्नी जब आँचल पसार कर भीख माँगती है तब करूणरस प्रदर्शित होता है । १-- द्वयाश्रय सर्ग ११, श्लोक ७६ २-- द्वयाश्रय सर्ग ६, श्लोक ७६ से ८३ । ३-- संस्कृत द्वयाक्षय सर्ग १०, श्लोक १०
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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