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________________ ६६ आचार्य हेमचन्द्र तीसरे सगँ में शरद्काल का वर्णन पढ़ते हुए 'भारवि' के किरातार्जुनीयम् की याद आये बिना नहीं रहती । दूसरे सर्ग में प्रभात काल का सुन्दर वर्णन है । सुपक्वधान को देखकर रक्षा करने वाली गोपिकाएँ इतनी प्रमुदित हो जाती हैं कि वे दिनभर गाना गाकर व्यतीत करती हैं । उन्हें खेद क्षणभर भी नहीं होता । प्रातः काल में राजा ने सूर्य का अनुकरण किया है अथवा सूर्य ने राजा के प्रताप का अनुकरण किया है, इस सन्देह से सूर्य का प्रकाश मन्द हो गया है । इसी प्रकार दशम् सर्ग में भी वर्षा ऋतु का सुन्दर वर्णन है । पन्द्रह तथा १६ वें सर्ग में सभी ऋतुओं का सुन्दर वर्णन मिलता है । १७ वें सर्ग में स्त्रियों का पुष्पोच्चय, वल्लभों के साथ गमन, जल क्रीड़ा आदि का वर्णन पढ़ते समय माघ के 'शिशुपाल वध' की बलात् याद आ जाती है । वैसे ही सर्ग १५ तथा ७ का यात्रा वर्णन तथा प्रथम सर्ग का नगर - वर्णन, १६ वें का पर्वत-वर्णन भी माध के 'शिशुपाल वध' के साथ साम्य रखता है । प्रारम्भ में ही हेमचन्द्र ने अणहिलपुर का सुन्दर वर्णन किया है । उस समय स्वस्तिक के समान सुन्दर मकान बनते थे । प्राकृत द्वयाश्रय में नगर के बाहर प्राकारों का दर्पण के साथ सादृश्य दिखाकर वर्णन किया है। प्राकारों का ऊँचा भाग स्फटिक शिला का बना था, मानो स्वर्गाङ्गनाओं का वह दर्पण था । त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित के १० वें पर्व के १२ वें मर्ग में ३६ वें श्लोक में ऐसा ही वर्णन है । अणहिलपुर पट्टन का वर्णन करते हुए कवि वहाँ के लोगों का उनकी मनोदशा का चरित्र का भी वर्णन करते हैं । वहाँ के पण्डित लोग वाणी में संयम करके निरर्थक एक शब्द भी नहीं बोलते हैं५ । यहाँ के विद्वानों की विद्वता को देखकर सप्तऋषि भी भूलोक छोड़कर चले गये । साथ में व्याकरण के पारिभाषिक शब्दों का भी प्रयोग होने से कुछ क्लिष्टता अवश्य आ जाती है । १७ वें सर्ग का श्रृंगार दर्शनीय है । १६ वें सर्ग का विवाह वर्णन नल दमयन्ति के विवाह का नैषध की याद दिलाता है । १ - द्वयाश्रय सर्ग ४, श्लोक १७ २- द्वयाश्रय सर्ग १६, श्लोक ८२ द्वयाश्रय नर्ग २, श्लोक १७ ४ — द्वयाश्रय सर्ग १६, श्लोक १२, तथा सर्ग १५, श्लोक ४१, और सर्ग १ श्लोक, ४ ५ - द्वयाश्रय सर्ग १, श्लोक & तथा १० ६ - - द्वयाश्रय सर्ग १, श्लोक १० ७- - द्वयाश्रय सर्ग १७, श्लोक ६६
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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