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________________ हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ सकता है। यह प्रसाद गुण उनके भक्ति काव्य में सर्वत्र व्याप्त है । जो मनुष्य महावीर के पवित्र शासन में अविश्वास रखता है वह मानो पथ्य, कल्याणकारी भोजन में ही शंका करता है । “संशयात्मा विनश्यति" गीतोक्ति की ध्वनि यहाँ मिलती है। उनके स्तोत्र काव्यों में जहाँ भक्ति है, वहाँ माधुर्य भी है । संसार में विनाश एवम् निर्माण चल ही रहा है । किन्तु भगवन् जिनेन्द्र में विश्वास रखने से ही भवक्षय हो सकता है। द्वयाश्रय के १३ वें सर्ग में भी माधुर्य की कमी नहीं है। जिस प्रकार महाकवि कालिदास के रघुवंश में एक ही राजा का वर्णन न होते हुए पूरे रघुवंश का विस्तृत वर्णन है उसी प्रकार द्वयाश्रय काव्य में मूलराज चालुक्य नरेश से आरम्भ कर कुमारपाल के वंश तक अनेक राजाओं का वर्णन किया गया है । सम्भव है कि 'द्वयाश्रय' लिखने के समय कालिदास के रघुवंश का आदर्श उनके सामने रहा हो। जिस प्रकार रघुवंश में दिलीप, रघु, अज, दशरथ, राम इत्यादि पात्रों में चरित्र का उत्तरोत्तर विकास बतलाया है, उसी प्रकार यहाँ भी मूलराज, चामुण्डराज, दुर्लभराज, भीम, कर्ण जयसिंह, कुमारपाल आदि पात्रों में चरित्र का उत्तरोत्तर उदात्त विकास बतलाया गया है । इस काव्य में सूर्यचन्द्र वंश का गौरव चालुक्य वंशियों को मिला । गुर्जर-भूमि हेमचन्द्र के लेखन में एक बड़ा राष्ट्र बन गयी। पाटन अयोध्या की शोभा को पार कर गया। मयणल्ला देवी के रूप में भारतीय पतिव्रता नारी का दर्शन होता है । सप्तम सर्ग में ही राज-वैभव का वर्णन करते हुए व्याकरण के दृश् (पश्य) घातु के वर्तमान काल के भिन्न-भिन्न रूप बतलाये हैं। इस राजा के द्वार में मॉडलिक राजाओं के समूह सेवा के लिए अहमहमिका से स्पर्धा करने लगे।" यह राजा सदैव परोपकार के कार्यों में ही लगा रहता था। . आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृतिक वर्णन बहुत चमत्कार जनक हैं । आपने प्रकृति की पूरी नैसर्गिकता का प्रदर्शन करने के लिए अपने वर्णनों में प्राकृतिक वस्तुओं का सुन्दर चित्रण किया है। उदाहरणार्थ-संस्कृत द्वयाश्रय काव्य में ही १- द्वयाश्रय-सर्ग १२; श्लोक ५४ तथा महावीर स्तोत्र-अयोगव्यवच्छेद, काव्यमाला; २- द्वयाश्रय-सर्ग १२; श्लोक १६ । ३- द्वयाश्रय-सर्ग १३; श्लोक १०२ तथा सर्य ७ ; श्लोक १०६ और ६ तथा ७ ४- द्वयाश्रय-सर्ग ३ श्लोक ५
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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