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________________ हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ है-संवर । जैनों के सिद्धान्त का यही सार है। शेष सब बातें इसी का विस्तार मात्र हैं । अनेकान्त मानने के कारण कोई भी विरोध उनके लिए असिद्ध है। हेमचन्द्र की काव्य प्रवृत्तियाँ-हेमचन्द्र के काव्य का अन्तरंग-पक्ष-रस-पावादिभावपक्ष महाकवि का समय एक ओर तो युद्ध का था, जब सेना के बल राजपूत नवीन राज्यों की स्थापना करते थे; दूसरी ओर वह काल विलासिता का एवम् धर्म-प्रचार का भी था। इसलिये द्वयाश्रय काव्य में एक ओर वीरता की भावना व्याप्त है तो दूसरी ओर धर्म-प्रचार की भावना; तथा तीसरी ओर उनकी कविता शृङ्गार के अपूर्व आनन्द की उपलब्धि कराती है । पाठक भावविभोर हो जाते हैं । कवि के कहने में रस है, अत: वह पाठक के हृदय के भाव को उबुद्ध करके साधारणीकरण द्वारा रस का आस्वादन करा रहा है । द्वयाश्रय काव्य का मुख्य रस वीर है, शृगार नहीं। इसमें नायक सिद्धराज की युद्ध-वीरता का बहुत ही विशुद्ध वर्णन किया है। उनके वर्णन व्यक्तियों में नवजीवन का सञ्चार कराते हैं । कवि के चरितनायक हिन्दू-संस्कृति के रक्षक एवम् दुष्टों के संहारक हैं । वीर रस के सहयोगी रौद्र रस और भयानक रस का भी यथा स्थान समावेश हो गया है। _ शृङगार का होना युग का प्रभाव है ऐसा कहना चाहिए । महाकाव्य में युद्ध और यात्रा वर्णनों के साथ-साथ ऋतु-वर्णन,वन-विहार, जल-विहार, आदि की भी परिगणना कर दी गयी है । वीर और शृङगार का अपूर्व मिश्रण द्वयाश्रय काव्य में है। भक्ति का भी योग है। शृङगार के वर्णन में हेमचन्द्र जैसे पहुँचे हुए शृङगारी भी दिखायी देते हैं । भक्ति-प्रधानता कवि की अपनी चीज है। रचना में अलङकारमयता के होते हुए भी भाव की प्रधानता है। सभी वर्णनों में कवि की अपनी अनुभूतियाँ बोल रही हैं। कल्पना की उड़ान और अनुभूति की गहनत । कवि को अपनी है।भाषा भी कवि की अपनी है-उनका उस पर अधिकार है । नवीन शब्दों की प्रसङगानुसार रचना का उसमें बाहुल्य है, फिर पद-योजना का सौष्व भी उनका अपना है। ____ महाकवि जिस शैली के प्रवर्तक थे उसमें प्रायः रस, भाव, अलङकार बहुजता आदि सभी बातें विद्यमान थीं। अश्वघोष और कालिदास की सहज एवम् सरल शैली जैसी शैली उनकी नहीं थी; किन्तु उनकी कविताओं में हृदय और मस्तिष्क का अपूर्व मिश्र ग था। हेमचन्द्र का कथानक शिशुपाल-वध जैसा १-द्वयाश्रय-सर्ग ८; श्लोक ६१ २ -दयाश्रय-सर्ग ११; श्लोक ४७
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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