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हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ
प्रदर्शित करती है। स्थूलभद्र की कथा इस प्रकार का एक दृष्टान्त है। तोन भिक्षुओं ने अपने आचार्य के सम्मुख व्रत धारण किया। प्रथम ने कहा कि वह सम्पूर्ण वर्षाकाल में एक सिंह की गुहा के सम्मुख बैठेंगे। दूसरे ने कहा कि इस अवधि में एक ऐसे सर्प की बाँबी के सम्मुख आवास ग्रहण करेंगे जिसका दर्शन मात्र ही प्राणघातक होता है। तृतीय ने कहा कि सम्पूर्ण वर्षाऋतु में वह एक जल-चक्र पर बैठेगे । तब भिक्षु स्थूलभद्र आये; उन्होंने यह जान लिया कि मन का नियंत्रण शरीर के संयम की अपेक्षा कहीं दुष्कर है । भिक्षु होने के पूर्व वह एक वेश्या कोशा के प्रेमी रह चुके थे। अब वह यह घोषित करते हैं कि चार मास तक वह उसके घर में ब्रह्मचर्य की अपनी प्रतिज्ञा खण्डित किये बिना ही निवास करेंगे । वह इस कार्य में केवल सफल ही नहीं होते, बल्कि कोशा के हृदय में भी परिवर्तन ले आते हैं । आचार्य उनका जयघोष करते हैं । इसके अतिरिक्त जैनलोकाचार जानने के लिए यह उपयुक्त ग्नन्थ है। बहुत-सी जैन-प्रथाओं का उद्गम इसमें देखने को मिलता है ।
वीतरागस्तोत्रम्- यह एक भक्तिस्तोत्र है। आचार्य हेमचन्द्र को भक्त का हृदय मिला था, अर्हन्तस्तोत्र, महावीर स्तोत्र एवम् महादेव स्तोत्र इसके प्रमाण हैं। वीतरागस्तोत्र में १८६ पद्य हैं। कुल २० स्तवों में इनका विभाजन किया गया है । अधिकांश स्तवों में ८-८ श्लोक हैं । विषय-विवरण इस प्रकार है
(१) प्रस्तावना स्तव (२) सहजातिशय वर्णन स्तव (३) कर्मक्षय जातिशय वर्णन स्तव (४) सुकृतातिशय वर्णन स्तव (५) प्रतिहार्यस्तव (६)विपक्षनिरास स्तव (७) जगत कर्तृत्वनिरास स्तव (८)एकान्त निरास स्तव (९)कलिप्रशम स्तव (१०) अद्भुत स्तव (११) अचिन्त्य महिमा स्तव (१२) वैराग्य स्तव (१३) विरोध स्तव (१४) योगसिद्ध स्तव (१५) भक्ति स्तव (१६)आत्मगर्दा स्तव (१७) शरणगमन स्तव (१८) कठोरोक्ति स्तव (१६) अज्ञास्तव और (२०) आशीस्तव ।
वीतराग स्तात्र के अन्त में आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है कि इन स्तवों को १- Helen-M. Johnson त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरितम्
Book II vol II & Ill Preface 20-40 G. O. S. 1931 "It is in itself almost a hand book of Jainism for Lexi cographer. It has a largea-mount of new materi al and for the student of folkloreans and the origin of customs, it gives the Jain tradition which is very different from Hindu,”