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हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ
शैली के महाकाव्यों की कोटि में ले जाता है ।
इस पुराण-काव्य का सप्तम् भाग जैन रामायण कहलाता है ; क्योंकि इसमें राम-कथा वर्णित है जिसमें प्राकृत 'पउमरियम' तथा संस्कृत 'पद्म पुराण' का अनुसरण किया गया है । हेमचन्द्र केवल किसी एक परम्परा के व्यक्ति नहीं थे बल्कि एक महान् शिल्पी भी थे। उनके इस रूपान्तर में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन, विशेषकर चरित्र-चित्रण में, हैं । इसमें राम न तो अवतार स्वरूप माने गये हैं, और न रावण खल-नायक । भरत की माता कैकेयी का शोभनीय वर्णन है। जब भरत राज्यगद्दी छोड़ देते हैं तो वह पश्चाताप करती है और राम की खोज में भरत का साथ देती है। वह अश्रुमिश्रित चुम्बनों द्वारा राम को अभिभूत कर देती है और उनसे वापिस लौटने का आग्रह करती है । रावण के चरित्र को भी उभार कर प्रस्तुत किया गया है ।
यह महाकाव्य सुदीर्घ होने के कारण आयासकर प्रतीत होता है। किन्तु इसकी भाषा जटिल न होकर, सरल है। १० पर्व में महावीर तीर्थङ्कर का जीवन-चरित्र वर्णित है जो स्वतंत्र प्रतियों के रूप में भी पाया जाता है । इसमें सामान्यतः आचारांग व कल्पसूत्र में वर्णित वृत्तान्त समाविष्ट किया गया है । हाँ, मूल घटनाओं का विस्तार व काव्यत्व हेमचन्द्र का अपना है। यहाँ महावीर के मुख से वीर निर्वाण से १६६६ वर्ष पश्चात होने वाले आदर्श नरेश कुमारपाल के सम्बन्ध की भविष्यवाणी करायी गयी है । इसमें राजा श्रेणिक, युवराज अभय, एवम् रोहिणेय चोर आदि की अनेक कथाएँ भी आया हैं । महावीर के जीवन-चरित्र वर्णन में बहुतकुछ संयत ऐतिहासिक दृष्टि पायी जाती है। इससे हमें हेमचन्द्र के सम्बन्ध में भी कुछ निश्चित् जानकारी प्राप्त होती है। इसी पर्व में अनेक रचनाओं की कथानक सम्बन्धी पुराकथाएँ तीर्थ-स्थानों के विषय में हैं। जैन धर्म के विभिन्न धर्माचार्यों के विगत अवतारों के समावेश से कथानक और भी वृहत् हो गया है। सामान्य कथानकों को बहुधा आलङ्कारिक तथा विस्तृत रूप प्रदान किया जाता है । इसमें अनेक धर्म निरपेक्ष निदर्शन भी प्रस्तुत किये गये हैं। समय-समय पर हम नाटकीय सम्भावनाओं से परिपूर्ण मर्मस्पर्शी कथाओं का विवरण पाते हैं । दीक्षा लेने के बाद भगवान् महावीर के पास एक ही वस्त्र था। राजकुमार होने के कारण वह वस्त्र अत्यन्त मूल्यवान था । एक गरीब ब्राह्मण ने उन्हें राजपुत्र समझकर याचना की। महावीर ने कहा "मैंने अब सब कुछ छोड़ दिया है। देने के लिये मेरे पास कुछ भी नहीं है। वस्त्र का आधा भाग मैं तुम्हें देता हूँ।" ब्राह्मण ने