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आचार्य हेमचन्द्र
कथा, सोल्लक कथा, शकुनि कथा, चित्र सुहृद कथा, विप्र दुहित नाग श्री कथा, ललिताङ्ग कथा, सपरि
वार जम्बू प्रव्रज्या प्रभव, प्रव्रज्या वर्णन । सर्ग ४ श्लो० सं० ६१ : जम्बूस्वामी का महानिर्वाण। " ५ , , १०७ : प्रभवदेवत्वशययम्भव चरित वर्णन । , ६ , , २५२ : यशोभद्र, देवीभाव, भद्रबाहू शिष्य चतुष्टयवृत्तान्त,
अन्निका पुत्र कथा, पाटलीपुत्र प्रवेश, उदयितारक
कथा, नन्दराज्य लाभ कीर्तन । सर्ग ७ श्लो० सं० १३८ : काल्पकामात्य संकीर्तन। ,, , , ४६६ : शकटारमरण-स्थूलभद्रदीक्षावतचर्या, सम्भूत विजय
स्वर्गगमन, चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथा, बिन्दुसार-जन्म,
राज्य-वर्णन। सर्ग ६ श्लो० सं० ११३ : बिन्दुसार-अशोक, श्री कुणाल कथा, सम्प्रति-जन्म,
राज्य-प्राप्ति स्थूलभद्रपूर्वग्रहण, श्री भद्रबाहू, स्वर्ग
गमन वर्णन । सर्ग १० श्लो० सं० ४० : आर्य महागिरि, आर्यसुहस्ति, दीक्षा, स्थूलभद्र
स्वर्ग-गमन । सर्ग ११ श्लो० सं० १७८ : सम्प्रतिराज चरित्र, आर्य महागिरि, स्वर्ग गमन,
अवन्ति सुकुमार नलिनी गुल्मगमन, आर्य सुह स्ति
स्वर्ग-गमन वर्णन । सर्ग १२ श्लो० सं० ३८८ : वज्रस्वामी जन्मव्रत प्रभाव वर्णन । सर्ग १३ श्लो० सं० २०३ : आर्यरक्षित व्रत ग्रहण पूर्वार्धागम, वज्रस्वामी स्वर्ग
गमन, तद्वशविस्तार वर्णन । भारत के प्राचीन इतिहास की गवेषणा में 'परिशिष्ट पर्व बहुत उपयोगी है। प्रो० जैकोबी ने 'स्थविरावलि चरित' सहित 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित' को रामायण, महाभारत की शैली में रचे गये एक जैन महाकाव्य के रूप में स्वीकार किया है । यह ग्रन्थ पुराण और काव्य-कला दोनों ही दृष्टियों से उत्तम है। इस विशाल ग्रन्थ का कथा-शिल्प महाभारत की तरह है । आचार्य हेमचन्द्र ने अपने इस ग्रन्थ को महाकाव्य कहा है। उसकी संवाद-शैली, उसके लोक तत्वों और उसकी अवान्तर कथाओं का समावेश इस ग्रन्थ को पौरागिक १- डॉ. जेकोबी-स्थविरावलिचरित-इन्ट्रोडक्शन पृ. २४; ऐशियाटिक
सोसायटी, कलकत्ता; १८८३ ।