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हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ
१० शीतल, ११ श्रेयांस, १२. वासुपूज्य, १३ विमल, १४.अनन्तजित्, १५. धर्म, १६. शान्ति, १७. कुन्थु, १८. अर, १६. मल्लि, २०. मुनिसुव्रत, २१. नमि (निमि), २२. नेमि,
२३. पार्श्व (नाथ) और २४. वीर । चक्रवर्ती १२- १. भरत, २. सगर, ३. मधवा, ४. सनत्कुमार, ५. शान्ति,
६. कुन्थु, ७. अर, ८. सुभूमः, ६. पद्म, १०. हरिषेण, ११.
जय और १२. ब्रह्मदत्त । वासुदेव ६- १. त्रिपृष्ट, २. द्विपृष्ट, ३. स्वयम्भू, ४. पुरुषोत्तम, ५. पुरुष
सिंह, ६. पुरुषपुण्डरीक, ७. दत्त, ८. नारायण और ६. कृष्ण। बलदेव ६- १. अचल, २. विजय, ३. भद्र, ४. सुप्रभ, ५. सुदर्शन, ६.
आनन्द, ७. नन्दन, ८. पद्म और ६. राम । प्रतिवासुदेव ६- १. अश्वग्रीव, २. तारक, ३. मेरक, ४. मधु, ५. निशुम्भ,
६. बलि, ७. प्रह्लाद, ८. लकेश (रावण) और ६. मगधेश्वर
(जरासन्ध)। "त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित" ३२००० श्लोक प्रमाण पुराण है । इसमें त्रैलोक्य का वर्णन पाया जाता है। इसमें परलोक, ईश्वर, आत्मा, कर्म, धर्म, सृष्टि आदि विषयों का विशद विवेचन किया गया है। इसमें दार्शनिक मान्यताओं का भी विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। इतिहास, कथा एवं पौराणिक तथ्यों का यथेष्ट समावेश किया गया है । सृष्टि, विनाश, पुननिर्माण, देवताओं की वंशावली, मनुष्यों के युगों, राजाओं की वंशावलि का वर्णन आदि पुराणों के सभी लक्षण पूर्णरूपेण इस महद् ग्रन्थ में पाये जाते हैं। ___"स्थाविरावलिचरित" अथवा 'परिशिष्टपर्वन्' यह 'त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित' का ही एक परिशिष्ट है। डा० हर्मन जेकोबी ने इसे सम्पादित कर १८८३ ई० में कलकत्ता से प्रकाशित किया। इसमें कुल १३ सर्ग तथा ३४२० श्लोक हैं । विषयानुक्रमणिका निम्न प्रकार हैसर्ग १ श्लो० सं० ४७४ : जम्बूस्वामी पूर्वभव वर्णन । , २ ., , ७४५ : जम्बूस्वामी विवाह, कुबेरदत्त कथा, महेश्वर दत्तकथा
कर्षक कथा, वानर-वानरी कथा, नूपुर पण्डिता,
शृगाल कथा, विद्य न्मालिक कथा, शंखधर्म कथा,
शिलाजतु वानर कथा। सर्ग ३ श्लो० सं० २६२ : सिद्धिबुद्धि कथा, जात्यश्वकिशोर कथा, ग्राम कूटंसुत