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हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ
वस्तु-वर्णन की दृष्टि से यह महाकाव्य सफल है। ऋतु-वर्णन, सन्ध्या, उषा, प्रातःकाल एवम् युद्ध आदि के दृश्य सजीव हैं । व्याकरण के उदाहरणों को समाविष्ट करने के कारण कृत्रिमता अवश्य है । पर इस कृत्रिमता ने काव्य के सौन्दर्य को अपकर्षित नहीं किया है। प्राकृतिक दृश्यों के मनोरम चित्रण और प्रौढ़ व्यंजनाओं ने काव्य को प्रौढ़ता प्रदान की है। इसमें सन्देह नहीं कि शास्त्रीय काव्य में व्याकरण के जटिल नियमों के उदारहण उपस्थित करने हेतु कथानक में सर्वाङ्गपूर्णता का सनिवेश होना कठिन हो गया है। वस्तु-विन्यास में प्रबन्धात्मक प्रौढ़ता आडम्बर युक्त उदाहरणों के कारण नहीं आने पायी है। फिर भी कथानक में चमत्कार-कमनीयता का अभाव नहीं है । यह काव्य कलावादी है। इसमें शाब्दी क्रीड़ा भी वर्तमान है । सुन्दर-सुन्दर वर्णनों की योजना कर कवि ने उक्त कथा-वस्तु में अलङ्कार-वैचित्र्य-और कल्पना-शक्ति के मिश्रण द्वारा चमत्कृत करने की सफल योजना की है। कवि हेमचन्द्र की अनेक उक्तियों में स्वाभाविकता, व्यंग्य तथा पाण्डित्य भरा हुआ है। कुमारपाल की दिनचर्या पाठकों को सुसंस्कृत जीवन बनाने के लिए प्रेरणा देती है। जिनेन्द्रवन्दन एवम् अन्य धार्मिक कार्यों में राजा का प्रतिदिन भाग लेना वर्णित है। इस काव्य में केवल राजा के विलासी जीवन का ही वर्णन नहीं है, अपितु उसके कर्मठ एवम् नित्य-कार्य करने में अप्रमादी जीवन का चित्रण है। नायक का चरित्र उदात्त और भव्य है। उसके महनीय कार्यों का सटीक वर्णन किया गया है।
त्रिषष्ठिशलाका पुरुषचरितम्
__ जैन-कवि धर्मभावना को काव्य के माध्यम से व्यक्त करना आवश्यक मानते हैं। इसीलिये जैन-संस्कृति के काव्य-ग्रन्थों में भी धार्मिक भावना का विशेष प्रभाव रहता है। जैन धर्म में प्राचीन पौराणिक परम्परा का अभाव-सा था। इसी अभाव की पूर्ति के लिए बारहवीं शताब्दी में हेमचन्द्र द्वारा त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित नामक पुराण काव्य की रचना की गयी। यह ग्रन्थ गुजरात नरेश कुमारपाल की प्रार्थना से लिखा गया था, और ई० स० ११६०-७२ के बीच पूर्ण हुआ। इसमें १० पर्व हैं, जिनमें २४ तीर्थङ्करादि ६३ महापुरुषों का चरित वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ का विषय-क्रम निम्नानुसार है
पर्व १- आदिनाथ चरित्र-भरतचक्रवर्ती-दो महापुरुषों के चरित इसमें हैं। पर्व २- अजितनाथ चरित्र-सगर चक्रवर्ती-इन दो महापुरुषों के चरित इसमें हैं।