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________________ ५२ आचार्य हेमचन्द्र करता है-'हे राजन् ! आपकी सेना के योद्धाओं ने कोकण देश में पहुंच कर मल्लिकार्जुन नामक कोकणाधीश की सेना के साथ युद्ध किया और मल्लिकार्जुन को परास्त किया है । दक्षिण दिशा को जीत लिया गया है । पश्चिम का सिन्धु देश आपके अधीन हो गया है। यवन नरेश ने आपके भय से ताम्बूल का सेवन त्याग दिया है। वाराणसो, मगध, गौड़, कान्यकुब्ज, चेदि, मथुरा और दिल्ली आदि नरेश आपके वशवर्ती हो गये हैं।" ___ इन क्रियाओं के अनन्तर राजा शयन करने चला जाता है । सोकर उठने पर परमार्थ की चिन्ता करता है। आठवें सर्ग में श्रुतदेवी के उपदेश का वर्णन है। इसमें मागधी पैशाची, चूलिका पैशाची और अपभ्रंश के उदाहरण आये हैं। इस सर्ग में आचार सम्बन्धी नियमों के साथ उनकी महत्ता एवम् उनके पालन करने का फल भी प्रतिपादित है। आलोचना इस महाकाव्य की कथा-वस्तु एक दिन की प्रतीत होती है। यद्यपि कवि ने कथा को विस्तृत करने के लिए ऋतुओं तथा उन ऋतुओं में सम्पन्न होने वाली क्रीड़ाओं का व्यापक चित्रण किया है, तो भी कथा का आयाम महाकाव्य की कथा-वस्तु के योग्य बन नहीं सका है। विज्ञप्ति निवेदन में दिग्विजय का चित्रण आ गया है । पर यह भी कथा-प्रवाह में साधक नहीं है। कथा की गति वर्तुलाकार-सी प्रतीत होती है। और, दिग्विजय का चित्रण उस गति में मात्र बुलबुला बनकर रह गया है। अतः संक्षेप में इतना ही कहा जा सकता है कि इस महाकाव्य की कथा-वस्तु का आयाम बहुत छोटा है। एक अहोरात्र की घटनाएँ रस-संचार करने की पूर्ण क्षमता नहीं रखती है। नायक का सम्पूर्ण जीवन-चरित्र समक्ष नहीं आ पाता है। उसके जीवन का उतार-चढ़ाव प्रत्यक्ष नहीं हो पाया है। अतः धीरोदात्त नायक के चरित्र का सम्पूर्ण उद्घाटन न होने के कारण कथा-वस्तु में अनेकरूपता का अभाव है। अवान्तर-कथाओं की योजना भी नहीं हो पायी है। विज्ञप्ति में निवेदित घटनाएं नायक के चरित्र का अंग बनकर भी उससे पृथक जैसी प्रतीत होती हैं । अतएव कथा-वस्तु में शैथिल्य दोष होने के साथ कथानक की अपर्याप्तता नामक दोष भी है।
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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