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आचार्य हेमचन्द्र
सुन्दर वर्णन है। अट्ठारहवें सर्ग में कुमारपाल का अरणोराज से युद्ध का वर्णन है तथा उसमें अरणोराज का पराभव बतलाया गया है। उन्नीसवें सर्ग में अरणोराज जल्हण कन्या को कुमारपाल को देते हैं। कुमारपाल उससे विवाह करते हैं। इस बात का विरोध करने वाले वल्लाल का सेनापति पराभव करते हैं । अन्यान्य शत्रुओं को जीतकर कुमारपाल पृथ्वी का न्यायपूर्वक शासन करते हैं। बीसवें सर्ग में एक दिन रात में उनका एक ग्रामीण से संवाद होता है । कुमारपाल आर्या घोषणा कर पति-पुत्र हीन स्त्री की आत्मोत्सर्ग से रक्षा करते हैं तथा अनाथों की सम्पत्ति न लेने का नियम बनाते हैं। यहाँ केदार हर्म्य का सुन्दर वर्णन है । अणहिलपुर में कुमारपालेश्वर नामक देवपत्तन, पितृवेश्मन कुमारपाल बनवाते हैं।
इस काव्य की श्लोक-संख्या सर्गानुसार इस प्रकार है--
सर्ग १,-२०१, सर्ग २-११०, सर्ग ३-१६०, सर्ग ४-०६४, सर्ग ५-१४२, सर्ग ६-१०७, सर्ग ७-१४२, सर्ग ८-१२५, सर्ग ६-१७२, सर्ग १०-०६०, सर्ग ११-११८, सर्ग १२-८१, सर्ग १३-११०, सर्ग १४-०७४, सर्ग १५-१२४, सर्ग १६-०६७, सर्ग १७-१३८, सर्ग १८-१०६, सर्ग १६-१३७, सर्ग २०-१०२,
वर्णन की दृष्टि से प्रथम सर्ग में नगर-वर्णन, दूसरे सर्ग में प्रभात-वर्णन, तीसरे, दसवें, पन्द्रहवें, और सोलहवें सर्ग में विविध ऋतुओं का वर्णन, पाँचवें, छठे, आठवें, बारहवें, तथा अठाहरवें सर्ग में युद्ध-वर्णन, सातवें तथा पन्द्रहवें सर्ग में यात्रा-वर्णन, सोलहवें सर्ग में पर्वत-वर्णन, उन्नीसवें सर्ग में विवाह-वर्णन, सत्रहवें सर्ग में स्त्रियों का पुष्पोच्चय, वल्लभों के साथ गमन, नदी, जलक्रीड़ा, निशा, सुरत, एवम् सूयर्दोय आदि का वर्णन है। संस्कृत महाकाव्य के सभी लक्षण इसमें विद्यमान हैं । अतः महाकाव्य की दृष्टि से भी यह एक अत्यन्त सफल रचना है।
प्राकृत-द्वयाधय काव्य अथवा कुमारपालचरित
आचार्य हेमचन्द्र ने स्वरचित प्राकृत-व्याकरण के नियमों को स्पष्ट करने • के लिए प्राकृत-द्वयाश्रय काव्य की रचना की। इसमें ८ सर्ग हैं। आरम्भ के ६ सर्गों में महाराष्ट्रीय प्राकृत के उदाहरण और नियम वर्णित हैं । शेष दो सर्गों में शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका पैशाची और अपभ्रंश भाषा के उदाहरण प्रयुक्त हैं । 'कुमारपालचरित' के अन्तिम सर्ग में १४-८२ तक पद्य अपभ्रश में मिलते हैं। इन पद्यों में धार्मिक उपदेश भावना प्रधान है। अपभ्रंश