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________________ हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ ४६ क्षेमराज के देवप्रसाद नाम का पुत्र हुआ । कणं का राज्याभिषेक, भीमराज का स्वर्गगमन,क्षेमराज का सरस्वती नदी के पास मण्डूकेश्वर पुण्यक्षेत्र में तप करना, उनकी सेवा के लिए पुत्र देवप्रसाद का जाना, उसे दधिस्थली का प्राप्त होना, जयकेशी की पुत्री मयणल्ल देवी से कर्ण का विवाह; इन सब बातों का वर्णन नवम् सर्ग में है । दशम् सर्ग में कर्ण का सन्तान रहित रहना, लक्ष्मी देवी भवनगमन, लक्ष्मी देवी की उपासना, वर्षा ऋतु का वणन, प्रलोभनार्थ अप्सराओं का आगमन, कर्ण का स्थिरत्व, भग्नमनोरथा अप्सराओं का चला जाना, फिर कि उग्र पुरुष का कर्ण को खाने के लिए दौड़ना, कर्ण का अविचलित रहना, अन्त में लक्ष्मी देवी का प्रसन्न होना, कर्ण के द्वारा लक्ष्मी की स्तुति, पुत्र-प्राप्ति का वर देकर लक्ष्मी का अंतर्धान होना, कर्णराज का राजधानी वापस लौटना वर्णित है। ग्यारहवें सर्ग में लक्ष्मी देवी की कृपा से श्रीमती मयणल्ला देवी गर्भवती रहती है तथा दसवें मास में जयसिंह का जन्म होता है । यहाँ बाल-वर्णन विस्तार पूर्वक मिलता है । जयसिंह का राज्याभिषेक कर कर्ण देव स्वर्ग सिधार जाते हैं । देवप्रसाद अपना पुत्र त्रिभुवनपाल जयसिंह के हाथों में देकर चिता में प्रवेश करते हैं । बारहवें सर्ग में राक्षसों का उपद्रव बताने के लिए ऋषियों का आगमन होता है । तदनुसार बर्बर राक्षसों का वध करने के लिए जयसिंह प्रस्थान करते हैं। युद्ध होता है। अन्त में पत्नी की प्रार्थना पर जयसिंह राक्षस को छोड़ देते हैं और फिर घर आते हैं। तेरहवें सर्ग में बर्बर राक्षसों ने कई भेटें दी उनसे जयसिंह का अच्छा मनोरंजन होता है। जनश्रुति सुनने के लिए जयसिंह नगर के बाहर जाते हैं। वहाँ सरस्वती नदी के किनारे नागमिथुन-दर्शन होता है । दूसरे दिन रात में योगिनी के साथ राजा का वार्तालाप होता है। चौदहवें सर्ग में यशोवर्मा राजा को मित्र बनाकर कालिका योगिनी की पूजा करता है। राजा सेना के साथ प्रस्थान करता है। अन्त में यशोवर्मा राजा को बाँधता है। पन्द्रहवें सर्ग में सिद्धराज जयसिंह राजधानी में आकर उद्दण्डों को दण्ड देता है । सोमनाथ की पवित्र यात्रा करता है। वहाँ कुमारपाल राजा होगा, ऐसा कहकर शम्भु अंतर्धान हो जाते हैं । यहाँ यात्रा-वर्णन, ऋतु-वर्णन, तथा मन्दिर-स्थापना का अति सुन्दर वर्णन है। अन्त में जयसिंह का स्वर्ग-गमन होता है। सोलहवें सर्ग में कुमारपाल का राज्याभिषेक होता है । उस समय पर्याप्त लोग इसका विरोध करते हैं । कुमारपाल अर्बुदगिरि जाते हैं। यहाँ अर्बुद पर्वत का सुन्दर वर्णन है । प्रायः सभी ऋतुओं का वर्णन यहाँ आता है। सत्रहवें सर्ग में स्त्रियों का पुष्पोच्चय, वल्लभों के साथ गमन, नदी, जलक्रीड़ा, निशा, सुरत, सूर्योदय, आदि का
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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