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हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ
संस्कृत द्वयाश्रय काव्य
शास्त्र- काव्य की परम्परा में आचार्य हेमचन्द्र के द्वयाश्रय काव्य का स्थान अपूर्व है । उनका यह काव्य व्याकरण, इतिहास और काव्य तीनों का वाहक है । " द्वयाश्रय" काव्य में दो भाग हैं । "द्वयाश्रय" नाम से ही स्पष्ट है कि उसमें दो तथ्यों को सन्निबद्ध किया गया है। प्रथम भाग में २० सर्ग और २८८८ श्लोक हैं । द्वितीय भाग ८ सर्गों में विभाजित है । यह प्राकृत भाषा का काव्य है । ऐतिहासिक लक्ष्य के साथ-साथ निश्चित् रूप से व्याकरण भी इसका लक्ष्य है । क्योंकि अपने ही व्याकरण में दिये हुए नियमों के उदाहरणों को दिखाना भी इस काव्य का प्रयोजन है । अतः इसमें चालुक्य वंश के चरित्र के साथ व्याकरण के सूत्रों के उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं । इस काव्य में कुमारपाल एवम् उनके पूर्वजों का वृत्तान्त विस्तृत रूप में मिलता है जो चालुक्य वंश के इतिहास के लिए स्पष्टतया मूल्यवान है । कल्हण के अनन्तर रचे गये ऐतिहासिक काव्यों में जैन मुनि हेमचन्द्र विशेष उल्लेखनीय हैं जिन्होंने अनहिलवाड़ के चालुक्य वंशीय राजा कुमारपाल के सम्मानार्थ 'द्वयाश्रय' काव्य की रचना की । प्राकृत द्वयाश्रय काव्य को कुमारपालचरित भी कहते हैं । जैन कवि हेम - चन्द्र ऐतिहासिक विषय पर निबद्ध महाकाव्यों की रचना में नितान्तदक्ष हैं; परन्तु इनका साहित्यिक तथा ऐतिहासिक मूल्य परिवर्तनशील है । हेमचन्द्र ने द्वयाश्रय काव्य में गुजरात के राजाओं का चरित अपने आश्रयदाता एवम् प्रियशिष्य कुमारपाल तक निबद्ध किया है । यह ऐतिहासिक होने के साथ-साथ शास्त्र - काव्य भी है तथा संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं के व्याकरण जानने के लिए नितान्त उपयोगी है ।
में
हेमचन्द्र का संस्कृत द्वयाश्रय ४ काव्य बहुगुण सम्पन्न है । इस महाकाव्य : उन्होंने सूत्रों का सन्दर्भ देकर अपनी विशिष्ठ प्रतिभा का परिचय दिया है । इसमें सृष्टि-वर्णन, ऋतु-वर्णन, रस वर्णन, आदि सभी महाकाव्य के गुण वर्तमान हैं ।
- विश्व - साहित्य की रूप रेखा - भगवतशरण उपाध्याय ।
- संस्कृत-साहित्य का इतिहास - ए० वी० कीथ - तथा बलदेव उपाध्याय
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- संस्कृत साहित्य की रूपरेखा - नानूराम व्यास और चन्द्रशेखर पाण्डे तथा रामजी उपाध्याय का संस्कृत साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास
४ - द्वयाश्रय काव्य Commentary by अभयतिलक गणी Vor I & II by A. V. Kathawate ; Bombay, Sanskrit and Prakirt series vol I, 1921, Vol II, 1915