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अध्याय-२
हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ
द्वयाश्रय काव्य तथा कुमारपालचरितम्
आचार्य हेमचन्द्र ने अनेक विषयों पर विविध प्रकार के काव्य रचे हैं । उनके काव्य-साहित्य में इतिहास है, पुराण है, दर्शन है एवम् भक्ति भी है । सत्य बात यह है कि आचार्य मूलतः जैनधर्म के उद्धारक एवम् प्रचारक रहे हैं। जीवन का प्रधान लक्ष्य जैनधर्म का प्रचार होने के कारण उनकी प्रत्येक साधना उसी लक्ष्य की पूर्ति की ओर अग्रसर हुई। अश्वघोष के समान हेमचन्द्र भी सोद्देश्य काव्य-रचना में विश्वास रखते थे। इनका काव्य "काव्यमानन्दाय," न होकर 'काव्यम् धर्मप्रचाराय' है । ऐसी रचनाओं में काव्य-तत्व के विशेषरूप से न रहने पर भी समाज के अभ्युदय के लिए योजना अवश्य होती है। काव्य के मुख्य प्रयोजन के साथ आश्रयदाता की पाण्डित्यपूर्ण प्रशंसा एवम् धर्म-गुरु तीर्थङ्करों के प्रति भक्तिभावयुक्त श्रद्धाञ्जलि अर्पित करना भी उनके काव्य का उद्देश्य प्रतीत होता है । इस दृष्टि से आचार्य हेमचन्द्र के काव्य तीन श्रेणियों में विभाजित किये जा सकते हैं- (१) ऐतिहासिक काव्य (२) पुराण (३) भक्ति एवम् दर्शन काव्य । उनका द्वयाश्रय महाकाव्य निश्चितरूप से ऐतिहासिक काव्य है। 'त्रिषष्ठिश लाका पुरुष चरित' एक पुराण काव्य है, जिसमें जैनधर्म एवम् संस्कृति का विशद् वर्णन है । 'द्वात्रिंशिका' के अन्तर्गत दो छोटे-छोटे काव्य हैं जिनमें जैन-दर्शन को दृष्टि से स्वमत मण्डन एवम् परमत खण्डन विद्यमान है । 'वीतराग स्तोत्र' विशुद्ध रूप से भक्तिकाव्य है जिसका संस्कृत स्तोत्र-साहित्य में महत्व पूर्ण स्थान है।