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आचार्य हेमचन्द्र
का उल्लेख है। निश्चित रूप से वि० सं० १२१६ के पश्चात् अनेकार्थ कोश की टीका आचार्य की दृष्टि के पश्चात् महेन्द्रसूरि शिष्य ने लिखी होगी। डा० बूल्हर 'प्रमाणमीमांसा' को वि० सं० १२१६-२६ के बीच में रखते है । इस तरह, आचार्य का रचना-काल सं० ११९२ से आरम्भ होता है तथा १२२६ तक समाप्त होता है। हेमचन्द्र के संस्कृत प्रन्थों की संख्या और उनका विषयानुसार वर्गीकरण
हेमचन्द्र द्वारा रचित पङ्क्तियों की संख्या ३॥ करोड़ बतायी जाती है। यदि हम इसे अतिशयोक्ति मान लें, तो उनकी १०० से अधिक रचनाएँ होंगी। रचनाओं को देखने से यह स्पष्ट होता है कि हेमचन्द्र अपने समय के अद्वितीय विद्वान थे। साहित्य के सम्पूर्ण इतिहास में किसी दूसरे ग्रन्थकार की इतनी अधिक और विविध विषयों की रचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं। रचनाओं की संख्या के सम्बन्ध में 'प्रभावचरित' का हेमसूरि प्रबन्ध द्रष्टव्य है जिसमें १२ ग्रन्थों के नाम गिनाये हैं
व्याकरणं पंचांगं प्रमाणशास्त्रं प्रमाणभीमांसाम् । छन्दोलंकृति चूडामणीच शास्त्रे विभूळधित ॥ एकार्थानका● देश्या निगण्टु इति च चत्वारः । विहिताश्च नाम कोशाः भुवि कविता नय्युपाध्यायाः ॥ त्रयुत्तरषष्ठिशलाका-नरेशव्रत गृहिव्रत विचारे। अध्यात्म योगशास्त्रं विदधेच द्वयाश्रयं महाकाव्यम् ।। चक्रे विंशतिमूच्चैः स वीतरागस्तवानांच । इति तद्विहित ग्रन्य-संख्यैव हि न विद्यते ॥ नामापि न विदन्त्यन्येत्वां मादृशा मंदबुद्धयः ॥ ८३२-८३६
काव्यमाला सीरीज़ के अन्तर्गत काव्यानुशासन की प्रस्तावना में औफ - चेट कॅटलॉग (Aufrech's catalogus) दिया हुआ है । उस सूची के अनुसार 'अनेकार्थ कोश' अनेकार्थ शेष, अभिधानचिन्तामणि', (नाममाला व्याख्या) 'अलङ्कार चूडामणि', 'उणादि सूत्रवृत्ति', 'काव्यानुशासनम्' 'छन्दोऽनुशासनम्' तदवृतिः 'देशीनाममाला', सवृत्ति, द्वयाश्रय काव्य, सवृत्ति, धातुपाठ सवृत्ति, धातुपारायण सवृत्ति, धातुमाला, नाममाला शेष, निघण्टु शेष, प्रमाणमीमांसा सवृत्तिः बलाबल सूत्र बृहदवृतिः बालभाषा व्याकरण सूत्रवृत्ति, योग-शास्त्र, विभ्रमसूत्र लिङ्गानुशासन सवृत्ति, शब्दानुशासन सवृत्ति, शेष सङ्ग्रह, शेष सङ्ग्रह सारोद्धार इनकी प्रसिद्ध कृतियाँ मानी गयी हैं ।