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जीवन-वृत्त तथा रचनाएँ
सिंह के राज्य में ही 'शब्दानुशासन' के बाद लिखा गया होगा। इसका रचनाकाल वि. सं. ११६५-६६ तक होना सम्भव है। 'हेम वृहद्वत्ति' के व्याख्याकार पं. चन्द्रसागर सूरि के मतानुसार हेमचन्द्राचार्य ने व्याकरण की रचना सं० ११६३-६४ में की थी। डा० बूल्हर के मत से 'काव्यानुशासन' तथा 'छन्दोऽनुशासन' कुमारपाल के प्रारम्भिक राज्यकाल में रचे गये होंगे। बूल्हर का का मत, कि 'छन्दोऽनुशासन' में राजा की स्तुति नहीं है, भ्रान्त है । 'छन्दोऽनुशासन' में सिद्धराज जयसिंह एवम् कुमारपाल दोनों की स्तुतियाँ है । जिनमें ४ जयसिंह के लिए तथा ४६ दूसरे चालुक्य नृपों के लिए हैं; किन्तु अधिकांश में कुमारपाल की स्तुतियाँ है। अतः 'छन्दोऽनुशासन' कुमारपाल के राज्यकाल में ही रचा गया होना चाहिये।
राजा कुमारपाल के आग्रह से आचार्य हेमचन्द्र ने 'योगशास्त्र', 'वीतरागस्तुति', 'कुमारपाल चरित' (प्राकृत द्वयाश्रय काव्य) एवम् 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित' की रचना की । उनकी अन्तिम रचना 'प्रमाणमीमांसा' थी, यह उनकी स्वलिखित प्रस्तावना से सिद्ध होता है । कुमारपाल का शासन-काल वि० सं० १२२६ तक था और वही हेमचन्द्र का जीवन-काल था। वे कुमारपाल के ६ मास पूर्व ही स्वर्गवासी हो चुके थे, अतः हेमचन्द्र का रचना-काल निश्चित रूप से वि० सं० ११९२ से १२२८ तक माना जा सकता है। डा० बूल्हर के मत से कुमारपाल के प्रारम्भिक राज्यकाल में कोशों के शेष परिशिष्ट तथा 'देशी नाममाला' की रचना हुई होगी। तीन निघण्टु इसी काल के हैं । देशी नाममाला की विस्तृत टीका का रचना-काल डा० बूल्हर वि० सं० १२१४-१५ मानते हैं । 'योगशास्त्र' तथा 'वीतरागस्तोत्र', वि० सं० १२१६ के पश्चात् लिखे गये होंगे । तत्पश्चात् टीका लिखी गयी होगी। 'त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित' का रचना-काल डा० बूल्हर वि० सं० १२१६-१२२६ के बीच मानते हैं । 'कुमारपाल चरित', 'संस्कृत द्वयाश्रय काव्य' के अन्तिम पाँच सर्ग तथा 'अभिधान चिन्तामणि' की टीका भी इसी काल की समझनी चाहिये; क्योंकि 'अमिधान चिन्तामणि' में 'योगशास्त्र' एवम् 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित' दोनों
१ -आनन्तर्यो वाथ शब्द: शब्दकाव्यछन्दो नु शासनेभ्योऽनंतरं प्रमाण मीमां
स्यत इत्यर्थः इति स्वयमेव आचार्योक्त्यैव प्रतीयते-आर्हतमत प्रभाकर प्रकाशन प्रमाणमीमांसा-मोतीलाल वाधाजी, १९६ भवानी पेठ, पूना, तथा त्रि०प० पु० च० १८-१६