________________
आचार्य हेमचन्द्र
माण्डलिक राजाओं ने भी अपने-अपने नगरों में विहार बनवाये । गुजरात से वास्तु-कला में निष्णात लोगों की माँग दक्षिण में भी की जाती थी। उस युग में विद्या और कला को जो प्रेरणा मिली थी, उसमें हेमचन्द्र को भी विद्वान् होने के साधन सुलभ हुए होंगे।
श
अनुश्रुति के अनुसार मालवा-विजय के पश्चात् सिद्धराज जयसिंह ने अवन्तिनाथ का विरुद धारण किया था। चालुक्य वंश में मालवा के साथ प्रतिस्पर्धा एवम् ईर्ष्या की भावना राजा भीमदेव प्रथम से चली आरही थी। अचार्य हेमचन्द्र के समय यह राजनीतिक स्पर्धा साहित्यिक स्पर्धा में परिणत हो गयी । मालवा की विजय के पश्चात् साहित्य एवम् संस्कृति के क्षेत्र में भी मालवा पर विजय प्राप्त कर सिद्धराज जयसिंह ने अवन्तिनाथ विरुद यथार्थ किया। साहित्यिक क्षेत्र में गुजरात को विजयश्री प्रदान करने हेतु आचार्य हेमचन्द्र ने प्रत्येक क्षेत्र में मौलिक साहित्य की रचना की । हेमचन्द्र का रचनाकाल
आचार्य हेमचन्द्र का सिद्धराज जयसिंह के साथ प्रथमपरिचय लगभग वि० सं० ११६६ के बाद हुआ होगा; क्योंकि सूरिपद प्राप्त होने के बाद ही उन्हें राजाश्रय मिला होगा। जयसिंह ने वि० सं० ११६१-६२ में मालवा पर विजय प्राप्त कर अवन्तिनाथ का विरुद धारण किया। तब सिद्धराज के आग्रहानुसार हेमचन्द्र ने अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ शब्दानुशासन 'सिद्धहेम' व्याकरण नाम से लिखा । प्रबन्धचिन्तामणि के अनुसार यह ग्रन्थ एक वर्ष में पूर्ण हुआ। 'सपादलक्षप्रमाणं ग्रन्थ संवत्सरे रचयांचक्रे' इस व्याकरण में सवा लाख पङ्क्तियाँ थीं। इतना बड़ा ग्रन्थ एक वर्ष में पूरा हुआ होगा इसमें सन्देह है। डा० बूल्हर ने 'सिद्धहेम' की प्रशस्ति के आधार पर यह कहा है कि मालव-विजय के पश्चात् एवम् तीर्थ-यात्रा से पूर्व व्याकरण-रचना सम्पन्न हुई होगी जिसके लिये वे ३ वर्ष का समय मानते हैं। दो-तीन वर्ष का समय ग्रहीत कर लेने पर शब्दानुशासन का रचनाकाल वि० सं० ११६२-६५ तक माना जा सकता है । डा० बूल्हर के मत से दोनों कोश जयसिंह की मृत्यु के पूर्व रचे गये होंगे। इसी प्रकार संस्कृत द्वयाश्रय के प्रथम चौदह सर्गों की भी रचना उनके सामने ही हुई होगी; किन्तु सम्पूर्ण द्वयाश्रय काव्य वि० सं० १२२० के पूर्व नहीं हो सका होगा।
तदनन्तर उन्होंने 'काव्यानुशासन' लिखा होगा । 'काव्यानुशासन' में कुमारपाल का कहीं भी नाम नहीं है। अतः उक्त ग्रन्थ कुमारपाल से पूर्व जय