SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन-वृत्त तथा रचनाएँ स्थित रखते हैं, उनके अस्तरूपी व्यसन को प्राप्त होते ही हम लोग अन्न-जल तक त्याग देते हैं । इस उत्तर को सुनकर उन ईर्ष्यालुओं का मुँह बन्द हो गया। आचार्य हेमचन्द्र में सर्वधर्म-सहिष्णुता बहुत थी। एक बार देवपत्तन के पुजारियों ने आकर राजा से निवेदन किया “सोमनाथ का मन्दिर बहुत जीर्णशीण हो गया है"। उनकी प्रार्थना' सुनते ही राजा ने जीर्णोद्धार का कार्य आरम्भ कर दिया। कुछ दिनों पश्चात् फिर वहाँ के मन्दिर के सम्बन्ध में पञ्चकुल का पत्र बाया। तब राजा कुमारपाल ने गुरु हेमचन्द्र से पूछा “इस धर्म-भवन के निर्माणार्थ क्या करना चाहिये।" हेमचन्द्र ने कहा "आपको या तो ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करते हुए देवार्चन में संलग्न रहना चाहिये अथवा मन्दिर के ध्वजारोपण तक मद्य-मांस के त्याग का व्रत धारण करना चाहिये ।" राजा ने सूरीश्वर के परामर्शानुसार उक्त व्रत धारण किया। 'प्रबन्धचिन्तामणि' में अन्य उपाख्यान भी हैं जिनसे उनकी धार्मिक उदारता प्रकट होती है। ___ जब राजा कुमारपाल ने सोमनाथ की यात्रा की तो आचार्य हेमचन्द्र को भी साथ में चलने का निमन्त्रण दिया। उन्होंने तुरन्त स्वीकार कर उत्तर दिग-"भला भूखे से निमन्त्रण का आग्रह क्या ? हम तपस्वियों का तो तीर्थाटन मुख्य धर्म ही है"। इसके पश्चात् राजा ने उनको सुखासन वाहनादि ग्रहण करने को कहा। परन्तु उन्होंने पैदल यात्रा करने की इच्छा प्रकट की और कहा कि हमारा विचार शीघ्र ही प्रयाण करने का है जिससे शत्रुञ्जय, गिरनारादि महातीर्थों की भी यात्रा कर आपके पहुंचते-पहुँचते हम देवपत्तन पहुँच जाएँ। राजा ने यात्रा आरम्भ की। वे देवपत्तन के निकट आ पहुँचे; परन्तु वहाँ आचार्यजी के दर्शन नहीं हुए, पर जब नगर में राजा का प्रवेशोत्सव सम्पन्न किया जा रहा था उस समय सूरीश्वर भी उपस्थित थे । राजा ने बहुत भक्ति से सोमनाथ के लिङ्ग की पूजा की और गुरु से कहा कि आपको कोई आपत्ति न हो तो आप भी त्रिभुवनेश्वर श्री सोमेश्वर देव का अर्चन करें। आचार्य हेमचन्द्र ने आह्वान अवगुण्ठन मुद्रा, मन्त्र, न्यास विसर्जनादि स्वरूप पंचोपचार विधि से शिव की पूजा की तथा निजनिर्मित श्लोकों से स्तुति की । कहा जाता है कि उन्होंने १ -भव बीजांकुर जननारा गाद्याः क्षयमुपा गता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णु वा हरो जिना वा नमस्तस्मै ।।
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy