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आचार्य हेमचन्द्र
को सूत्रानुक्रम से उद्धृत करते हुए 'कुमारपाल-चरित्र' भी एक विशाल द्वयाश्रय काव्य के रूप में रचा, एक व्यक्ति की व्याकरणशास्त्र की यह उपासना अनुपमेय है। फिर जब पुराण, काव्य, दर्शन, कोश, छन्द आदि विषयों की उनकी अन्य कृतियों का भी लेखा-जोखा लगाया जाता है ; तब उनकी आश्चर्यजनक प्रतिभा के प्रति अपार श्रद्धा जागृत होती है ।
___ आचार्य हेमचन्द्र के प्रभावशाली व्यक्तित्व के सम्बन्ध में विन्टरनित्ज महोदय ने लिखा है कि 'आचार्य हेमचन्द्र के कारण ही गुजरात श्वेताम्बरियों का ' गढ़ बना तथा वहाँ १२ वी १३ वीं शताब्दी में जैन-साहित्य की विपुल समृद्धि हुई । विन्टरनित्ज महोदय के अनुसार वि० सं० १२१६ में कुमारपाल पूर्णतया जैन बने तथा उनकी दीक्षा के दिन पृथ्वीपाल मन्त्री की प्रार्थना पर हरिभद्रसूरि ने "नेमिचरित" को पूरा किया। इसीलिये जैन साहि य में विशेषकर धार्मिक क्षेत्र में हेमचन्द्र का नाम अग्रणी है। गुजरात में तो जैन सम्प्रदाय के विस्तार का सबसे अधिक श्रेय इन्हें ही है।
आचार्य हेमचन्द्र उत्कृष्ट ज्योतिषी थे। उन्होंने कुमारपाल को राज्यारोहण की तिथि बता दी थी तथा दैवी दुर्घटना की सूचना देकर कुमारपाल के प्राण बचाये थे।
हेमचन्द्र अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि थे। धार्मिक उदारता भी उनमें थी। प्रबन्धचिन्तामणि में इस विषय में एक सुन्दर उपाख्यान दिया है । 'एक बार राजा कुमारपाल के सामने किसी मत्सरी ने कहा, “जैन प्रत्यक्ष देव सूर्य को नहीं मानते।' इस पर हेमचन्द्र ने उत्तर दिया “वाह ! कैसे नहीं मानते ?"
अधाम धाम धामैव वयमेव हृदिस्थितम् ।
यस्यास्तव्यसनें प्राप्ते त्यजामों भोजनोदके ॥ अर्थात् हम जैन लोग ही प्रकाश के धाम श्री सूर्यनारायण को अपने हृदय में
१-प्रभावक्चरित पृष्ठ ३१४ श्लोक २६२-२६४ २-मोहराजपराजय अड़क ५ तथा काव्यानुशासन प्रस्तावना पृष्ठ २८९
तथा २६१ 3. History of Indian Literature by Winternitz, Vol. II
Page - 482 - 83; 5 1॥