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जीवन-वृत्त तथा रचनाएँ
ने अनेक तालाब, धर्मशालाएँ, विश्राम-स्थल, विहारादि आचार्य हेमचन्द्र की प्रेरणा से ही बनवाये । इनमें दीक्षाविहार, धुन्धुका में झोलिकाविहार, पिता की स्मृति में त्रिभुवनपालविहार, अपनी स्मृति में कुमारविहार, मूषकविहार, करम्बविहार इत्यादि महत्वपूर्ण हैं। श्री तारङ्गतीर्य अजितनाथ भगवान का विशाल एवम् गगनचुम्बी शिखर, सैकड़ों नवीन मन्दिर, हजारों पुराने मन्दिरों का जीर्णोद्धार कुमारपाल ने करवाया। केदार तथा सोमनाथ का भी उद्धार उसी ने किया । उसने सात बड़ी यात्राएँ को और ६ लाख रत्न पूजा में चढ़ाये ।
कुमारपाल की प्रार्थना पर आचार्य हेमचन्द्र ने 'योगशास्त्र', 'वीतरागस्तुति' एवम् 'त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित' पुराण की रचना की। संस्कृत में 'द्वयाश्रय काव्य के अन्तिम सर्ग तथा प्राकृत द्वयाश्रय कुमारपाल के समय में ही लिखे गये । 'प्रमाणमीमांसा' की रचना इसी समय में हुई । हेमचन्द्र ने पूर्व रचित ग्रन्थों में संशोधन, स्वोपज्ञ टीकाएँ एवं 'अभिधान चिंतामणि' में कुमारपाल की प्रशस्ति लिखी है। कुमारपाल ने ७०० लेखकों को बुलवाकर हेमचन्द्र के ग्रन्थ लेखबद्ध करवाये । उसने २१ बड़े ज्ञान भाण्डार निर्मित कराये।
___ आचार्य हेमचन्द्र के आस्थान (विद्या-मण्डप) का मनोहर वर्णन 'प्रभावक चरित' में मिलता है। 'हेमचन्द्र का आस्थान, जिसमें विद्वान प्रतिष्ठित थे, ब्रह्मोल्लास का निवास और भारती का पितृगृह था। यहाँ महाकवि अभिनव ग्रन्थ निर्माण में निमग्न थे । वहाँ पट्टिका और पट्ट पर लेख लिखे जा रहे थे एवम् शब्द-व्युत्पत्ति के लिए उहापोह होते रहने से वहाँ पुराण कवियों द्वारा प्रयुक्त शब्द दृष्टान्त रूप से उल्लिखित किये जाते थे। सम्भवतः सिद्धराज ने आचार्यजी को एक विशाल ग्रंथालय सुगम किया होगा। जैन लोग कहते हैं कि १०० शिष्यों का परिवार उन्हें नित्य घेरे रहता था और जो ग्रन्थ गुरु लिखाते थे, उनको वह लिख लिया करता था। साहित्यिक जीवन- प्रभावशाली व्यक्तित्व-अवसान
__ आचार्य हेमचन्द्र का जीवन जैन धर्म के प्रचार में तथा कुमारपाल को उपदेश देते हुए साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र में सर्जना करते हुए ही व्यतीत होने लगा। उन्होंने ४-५ हजार सूत्रों में 'शब्दानुशासन' को पूरा करके १८,००० श्लोकों की वृहद्वृत्ति तथा सामान्य पाठकों के लिए लघुवृत्ति भी लिखी। उसमें गणपाठ, धातुपाठ, उणादि लिङ्गानुशासन प्रकरण भी जोड़े । समस्त व्याकरण
१-हेमचन्द्राचार्य-ईश्वरलाल जैन