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आचार्य हेमचन्द्र
से पूछा, "अब राजा मेरा स्मरण करता है या नहीं ?" इस पर मन्त्री ने सङ्कोच का अनुभव करते हुए, स्पष्ट कहा "नहीं, अब स्मरण नहीं करता"। सम्भवतः राज्य-प्रबन्ध में बहुत अधिक व्यस्त होने के कारण तथा शत्रुओं का दमन करने में रत होने के कारण कुमारपाल को स्वस्थ चिंतन करने का अवकाश नहीं मिला होगा। अस्तु ।" तब सूरीश्वर हेमचन्द्र ने मन्त्री से कहा, "आज आप राजा से कहें कि वह अपनी नयी रानी के महल में न जाए। वहाँ आज दैवी उत्पात होगा। यदि राजा आपसे पूछे कि यह बात किसने बतलायी तो बहुत आग्रह करने पर ही मेरा नाम बतलाना ।” मन्त्री ने ऐसा ही किया । रात्रि को महल पर बिजली गिरी और रानी की मृत्यु हो गई। इस चमत्कार से अतिविस्मित हो राजा मन्त्री से पूछने लगा कि यह बात किस महात्मा ने बतलायी थी ? राजा के विशेष आग्रह करने पर मन्त्री ने गुरुजी के आगमन का समाचार सुनाया। राजा ने प्रमुदित होकर उन्हें महल में बुलाया। सूरीश्वर पधारे । राजा ने उनका सम्मान किया और प्रार्थना की, 'उस समय आपने हमारे प्राणों की रक्षा की और यहाँ आने पर हमें दर्शन भी नहीं दिये । लीजिए अब आप अपना राज्य सम्हालिए' । सुरि ने प्रत्युत्तर में कहा, "राजन् । यदि कृतज्ञता के कारण प्रत्युपकार करना चाहते हैं तो आप जैन धर्म स्वीकार कर उस धर्म का प्रसार करें।" राजा ने शनैः शनैः उक्त आदेश को स्वीकार करने की प्रतिज्ञा की। कुमारपाल ने अपने राज्य में प्राणिवध, मांसाहार, असत्य-भाषण घू त-व्यसन, वेश्या-गमन, पर-धन हरण, मद्य-पान आदि का निषेध कर दिया। कुमारपाल के आचार-विचार और व्यवहार देखने से अनुमान होता है कि उसने जीवन के अन्तिम दिनों में जैन धर्म स्वीकार कर लिया होगा।
आचार्य हेमचन्द्र के महावीर-चरित के कतिपय श्लोकों के आधार पर कुमारपाल और हेमचन्द्र के मिलने के सम्बन्ध में डा. बूल्हर ने बताया है कि हेमचन्द्र कुमारपाल से तब मिले जब उनके राज्य की समृद्धि और विस्तार चरम सीमा पर पहुँच गया था । डा. बूल्हर की इस मान्यता की आलोचना 'काव्यानुशासन' की भूमिका में प्रो. रसिकलाल पारीख ने की है । उन्होंने उक्त कथन को विवादास्पद सिद्ध किया है । उनके मत के अनुसार महावीर चरित का वर्णन उन दोनों की परिपक्व सम्बन्ध-अवस्था का वर्णन है, प्रारम्भिक नहीं। फिर भी धर्म का विचार करने का अवसर उस प्रौढ़ वय के राजा को राज्य की सुस्थिति के बाद ही मिला होगा। १- महावीर-चरित श्लोक ५३ (४५-५८)