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जीवन-वृत्त तथा रचनाएँ
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राजगद्दी का झगड़ा खड़ा हुआ और अन्त में कुमारपाल वि० सं० ११६६ में मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी को राज्याभिषिक्त हुआ ।
सिद्धराज जयसिंह अपने जीवन काल में कुमारपाल को मारने की चेष्टा में था' । अतः यह अपने प्राण बचाने के लिए गुप्तवेष धारण कर भागता हुआ स्तम्भतीर्थ पहुँचा । यहाँ पर वह हेमचन्द्र और उदयन मन्त्री से मिला । दुःखी होकर कुमारपाल ने हेमसूरि से कहा, "प्रभो ! क्या मेरे भाग्य में इसी तरह कष्ट भोगना लिखा है; या और कुछ भी ?" सूरीश्वर ने विचार कर कहा, "मार्गशीर्ष वदी १४ में आप राज्यासनासीन होंगे । मेरा यह कथन कभी असत्य नहीं हो सकता।" उक्त वचन सुनकर कुमारपाल बोला, "प्रभो ! यदि आपका वचन सत्य सिद्ध हुआ तो आप ही पृथ्वीनाथ होंगे; मैं तो आपके चरणकमलों का सेवक बना रहूंगा ।" इस पर स्मित हास्य करते हुए सूरीश्वर बोले, हमें राज्य से क्या काम ? यदि आप राजा होकर जैन धर्म की सेवा करेंगे तो हमें प्रसन्नता होगी । तदनन्तर सिद्धराज के भेजे हुए राजपुरुष कुमारपाल को ढूंढते हुए स्तम्भतीर्थ में ही आ पहुँचे । इस अवसर पर हेमचन्द्राचार्य ने उसे अपने वसतिगृह के भूमिगृह में छिपा दिया और उसके द्वार को पुस्तकों से ढँक कर उसके प्राण बचाए । तत्पश्चात् सिद्धराज जयसिंह की मृत्यु हो जाने पर हेमचन्द्र की भविष्यवाणी के अनुसार कुमारपाल सिंहासनासीन हुआ ।
राजा बनने के समय कुमारपाल की अवस्था ५० वर्ष की थी । इसका समर्थन 'प्रबन्धचिन्तामणि', 'पुरातनप्रबन्धगृह' तथा 'कुमारपालप्रबन्ध' से भी होता है । इसका लाभ यह हुआ कि उसने अपने अनुभव और पुरुषार्थ द्वारा राज्य की सुदृढ़ व्यवस्था की । यद्यपि यह सिद्धराज के समान विद्वान् और विद्या- रसिक नहीं था, तो भी राज्य - प्रबन्ध के पश्चात् वह धर्म तथा विद्या से प्रेम करने लगा था ।
कुमारपाल की राज्य प्राप्ति का समाचार सुनकर हेमचन्द्रसूरि कर्णावती से पाटन आए । उदयन मन्त्री ने उनका स्वागत किया । इन्होंने मन्त्री
१ - कुमारपाल को हीनकुल में समझने के कारण ही सिद्धराज उसे मारना चाहते थे - नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भाग ६ पृष्ठ ४४३-४६८
२ - प्रबन्धचिन्तामणि - कुमारपालादि प्रबन्ध, पृष्ठ ७७-६८ कुमारपाल हेमसूरि समागम वर्णनम्, पृष्ठ ८२