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आचार्य हेमचन्द्र
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आचार्य हेमचन्द्र ने आख्यान का उपसंहार करते हुए कहा, "राजन् जिस प्रकार नाना प्रकार की घास के मिल जाने से यशोमती को औषधि की पहचान नहीं हो सकी, उसी प्रकार इस युग में कई धर्मों से सत्य धर्मं तिरोभूत हो रहा है, परन्तु समस्त धर्मों के सेवन से उस दिव्य औषधि की प्राप्ति के समान पुरुष को कभी न कभी शुद्ध धर्म की प्राप्ति हो ही जाती है । जीव दया, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवम् अपरिग्रह के सेवन से बिना किसी विरोध के समस्त धर्मों का आराधन हो जाता है । आचार्य के इस उत्तर ने समस्त सभासदों को प्रभावित किया । आचार्य हेमचन्द्र अनेकान्त को सर्व-दर्शन- सङ्ग्रह के रूप में भी घटाते हैं । यह सर्व-दर्शन मान्यता की दृष्टि साम्प्रदायिक चातुरी थी (जैसा कि to बुल्हर मानते हैं), अथवा सारग्राही विवेक-बुद्धि में से परिणत थी, इसका निर्णय करने का कोई बाह्य साधन नहीं । परन्तु अनेकान्तवाद के रहस्यज्ञ चन्द्र में ऐसी विवेक बुद्धि की सम्भावना है ।
आचार्य हेमचन्द्र तथा उनके आश्रयदाता सिद्धराज जयसिंह लगभग समवयस्क थे । सिद्धराज का जन्म उनसे केवल तीन वर्ष पूर्व ही हुआ था । अतः इन दो महानुभावों का परस्पर सम्बन्ध गुरु-शिष्य के समान कभी नहीं रहा प्रतीत होता है । फिर भी सिद्धराज सदैव हेमचन्द्र के प्रभाव में रहे । हेमचन्द्र ने सर्व दर्शन के सम्मत होने का उपदेश किया तो सिद्धराज ने सर्व धर्मों का समान आराधन किया । यही कारण है कि सिद्धराज ने प्रजाजनों के साथ सदैव अत्यन्त उदार व्यवहार किया। उसके राज्य में वैदिक सनातन धर्म के साथ जैन सम्प्रदाय की भी बहुत अभिवृद्धि हुई । जैन सम्प्रदाय की अभिवृद्धि में सम्भवतः सिद्धराज की माता मयणल्लादेवी भी कारण रही होंगी, क्योंकि वे स्वयं जैन धर्म में दीक्षित थीं । सिद्धसेन, दिवाकरसेन, उदयन आदि कुछ मन्त्रीगण भी जैन थे। जयसिंह ने वि० सं० ११५१ - ११६६ तक राज्य किया । इनके स्वर्गवास के समय हेमचन्द्र की आयु ५.४ वर्ष कीथी । वे तब तक अच्छी प्रतिष्ठा पा चुके थे ।
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हेमचन्द्र और कुमारपाल -
सिद्धराज के कोई पुत्र नहीं था,
इससे उनकी मृत्यु के
पश्चात्
१- सर्वदर्शनमान्यता नामक प्रबन्ध-प्रबन्धचिन्तामणि- पृष्ठ ७०
२ - सिद्धहेम - सकल दर्शनसमूहात्मकम् स्याद्वादसमाश्रयणम् अतिरमणीयम्पृष्ठ ८- सि. हे. शब्दानुशासन तत्व प्रकाशिका महार्णवन्यास Edited by पं० भगवानदास, १९२१, पाटन