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जीवन-वृत्त तथा रचनाएँ
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सम्मान करता था । जब किसी सिद्धान्त के सम्बन्ध में शङका उत्पन्न होती थी तब जयसिंह स्वयं उसे दूर करता था। जयसिंह विद्वान् था। धर्मचर्चा सुनने की उसे बड़ी अभिरुचि थी। एक बार संसार-सागर से पार होने के इच्छुक सिद्धराज ने देवतात्व की पात्रता के विषय में सब दार्शनिकों से पूछा । सभी ने अपने-अपने मत की स्तुति एवं पर मत की निन्दा की। तब उन्होंने आचार्य हेमचन्द्र के सम्मुख शङ्का प्रकट की कि "प्रभो! संसार सागर से पार करने वाला कौन सा धर्म है ?" इस प्रश्न के उत्तर में हेमचन्द्र ने शाम्ब का निम्न लिखित पुराणोक्त आख्यान कहा :
"शेखपुर में शाम्ब नामक एक सेठ और यशोमती नाम की उसकी पत्नी रहती थी। पति ने अपनी पत्नी से अप्रसन्न होकर एक दूसरी स्त्री से विवाह कर लिया । अब वह नवोढ़ा के वश होकर बेचारी यशोमती को फूटी आँखों से देखना भी बुरा समझने लगा। यशोमती को अपने पति के इस. व्यवहार से बड़ा कष्ट हुआ और वह प्रतिकार का उपाय सोचने लगी।
एक बार कोई कलाकार गौड़ देश से आया । यशोमती ने उसकी पूर्ण श्रद्धाभक्ति से सेवा की और उससे एक ऐसी औषधि ली, जिसके द्वारा पुरुष पशु बन सकता था। यशोमती ने आवेशवश एक दिन भोजन में मिलाकर उक्त औषधि अपने पति को खिला दी, जिससे वह तत्काल बैल बन गया। अब उसे अपने इस अधूरे ज्ञान पर बड़ा दुःख हुआ । वह सोचने लगी कि वह उस बैल को पुरुष किस प्रकार बनाए ? अतः लज्जित और दुःखित होकर जंगल में एक वृक्ष के नीचे बैलरूपी पति को घास चराया करती थी और बैठी-बैठी विलाप करती रहती । दैवयोग से एक दिन शिव और पार्वती विमान में बैठे हुए आकाश-मार्ग से उसी ओर जा रहे थे। पार्वती ने, उसका करुण विलाप सुनकर शङ्कर भगवान से पूछा, 'स्वामिन् इसके दुःख का क्या कारण है ?' शङ्कर ने पार्वती की शंङ्का का समाधान किया और कहा कि इस वृक्ष की छाया में ही इस प्रकार की औषधि विद्यमान है जिसके सेवन से यह पुनः पुरुष बन सकता है। इस संवाद को यशोमती ने भी सुन लिया और उसने तत्काल ही उस छाया को रेखाङ्कित कर दिया और उसके समस्त मध्यवर्ती अङ्करों को तोड़-तोड़ कर बैल के मुख में डाल दिया । घास के साथ-साथ औषधि के चले जाने पर वह बैल पुनः पुरुष बन गया।"
१- मुद्रित-कुमुदचन्द्र अङक ५ - पृष्ठ ४५