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आचार्य हेमचन्द्र
'प्रभावक्चरित' एवं 'प्रबन्धचिन्तामणि' के अनुसार कुमुदचन्द्र के लोकविश्रुत शास्त्रार्थ के समय आचार्य हेमचन्द्र सभा पण्डित के नाते उपस्थित थे । यह शास्त्रार्थ वि० सं० १९८१ में हुआ था ' ।
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उस समय उनकी आयु ३६ वर्ष की थी तथा सूरिपद प्राप्त हुए १५ वर्ष व्यतीत हो चुके थे । ' प्रबन्धचिन्तामणि' के अङ्ग्रेजी अनुवादक प्रो० टॉनी के मतानुसार हेमचन्द्र ने सर्वप्रथम अपनी बहुमुखी विद्वत्ता से ही राजा को प्रभावित किया होगा तथा बाद में धार्मिक प्रभाव आया होगा । 'प्रभावक्चरित' के अनुसार हेमचन्द्र का सिद्धराज जयसिंह से प्रथम मिलन अणहिलपुर के एक संकरे मार्ग पर हुआ । यहाँ से जयसिंह के हाथी को गुजरने में रुकावट पड़ी और इस प्रसङ्ग पर एक तरफ से हेमचन्द्र ने 'सिद्ध को निश्शंक होकर अपने गजराज को ले जाने के लिये कहा और श्लेष से स्तुति की' २ । परन्तु इस उल्लेख में कितना ऐतिहासिक तथ्य है, यह कहना कठिन है । 'कुमारपालप्रबन्ध' में उल्लेख प्राप्त होता है कि हेमचन्द्र और जयसिंह का प्रथम समागम इस प्रसङ्ग से पूर्व भी हुआ था ।
कहा जाता है कि इस श्लोक को सुनकर जयसिंह प्रसन्न हुए और उन्होंने हेमचन्द्रसूरि को अपने दरबार में बुलाया । यही वृत्तान्त कुछ रूपान्तर से 'प्रबन्धकोश' में मिलता है । 'एक दिन सिद्धराज जयसिंह हाथी पर बैठ कर पाटन के राजमार्ग से विचरण कर रहे थे । उनकी दृष्टि मार्ग में शुद्धिपूर्वक गमन करने वाले हेमचन्द्र पर पड़ी । मुनीन्द्र की शान्त मुद्रा ने राजा को प्रभावित किया और अभिवादन के पश्चात् उन्होंने कहा, "प्रभो ! आप राजप्रासाद में पधारकर दर्शन देने की कृपा करें" । तदनन्तर हेमचंद्र ने यथा समय राजसभा
पृष्ठ वही
१- प्रबन्धचिन्तामणि - जयसिंहदेव हेमसूरिसमागम : प्रभावक्चरित- हेमचन्द्र ! श्लोक ६८-७२
२ - कारय प्रसरं सिद्धहस्ति राजमशङ्कितम् ।
त्रस्यन्तु दिग्गजाः किं तैं भूस्त्वयैवोदृधृतायता |१| प्रभावक्चरित श्लोक ६५
३ - प्रबन्धचिन्तामणि, पृष्ठ ६७
"ओ सिद्ध, तुम्हारे सिद्ध गज निर्भयता से भ्रमण करे। दिग्गजों को काँपने दो । उनसे क्या लाभ ? क्योंकि तुम पृथ्वी का भार वहन कर रहे हो ।"