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आचार्य हेमचन्द्र
'प्रभावकचरित' से ज्ञात होता है कि हेमचन्द्र ने ब्राह्मीदेवी की, जो विद्या की अधिष्ठात्री मानी गई है-साधना के निमित्त काश्मीर की यात्रा आरम्भ की । वे इस साधना के द्वारा अपने समस्त प्रतिद्वंदियों को पराजित करना चाहते थे । मार्ग में जब ताम्रलिप्त (खम्बात) होते हुए रेवन्तगिरि पहुँचे तो नेमिनाथ स्वामी की इस पुण्य भूमि में इन्होंने योग विद्या की साधना आरम्भ की । नेमितीर्थ में नासाग्रदृष्टियुक्त समाराधना से देवी शारदा प्रसन्न हो गयीं । इस साधना के अवसर पर ही साक्षात् सरस्वती उनके सम्मुख प्रकट होकर कहने लगी "वत्स, तुम्हारी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंगीं। समस्त वादियों को पराजित करने की क्षमता तुम्हें प्राप्त होगी"। इस वाणी को सुनकर हेमचन्द्र बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी आगे की यात्रा बिलकुल स्थगित करदी। वे वापिस लौट आये। ब्राह्मी देवी ने उन्हें काश्मीर जाने के लिये अनुमति नहीं प्रदान की। हेमचन्द्र इस प्रकार देवी की कृपा से सिद्ध सारस्वत बन गये।
काश्मीरवंशिनी ब्राह्मीदेवी की साधना का अर्थ यह है कि हेमचन्द्र ज्ञानवृद्धि करने के लिये काश्मीर जाना चाहते थे। उस समय काश्मीर पण्डितों के लिये प्रसिद्ध था क्योंकि श्री अभिनव गुप्त, मम्मट, आदि उद्भट विद्वान् उस समय काश्मीर में थे। काश्मीरवासिनो देवी की घटना से यद्यपि हेमचन्द्र के काश्मीर जाने की घटना का मेल नहीं बैठता, फिर भी सम्भव है कि उन्होंने काश्मीर के पण्डितों से अध्ययन किया हो । यद्यपि हेमचन्द्र के गुरु देवचन्द्र अत्यन्त विद्वान् थे तथापि उन्होंने ही सारे विषय हेमचन्द्र को पढ़ाये होंगे यह व्यवहार्य प्रतीत नहीं होता। स्तम्भतीर्थ में उन्हें पढ़ने के लिये पर्याप्त सुविधाएँ मिली होंगी, यह सम्भव है। किन्तु अणहिलपुर के समान विद्या केन्द्र के रूप में स्तम्भ तीर्थ को प्रसिद्धि नहीं मिली । अतः सम्भव है, उन्होंने कुछ समय अणहिलपुर में भी अध्ययन किया हो । ब्राह्मी देवी की घटना से हेमचन्द्र की रचनाओं का काश्मीर ग्रन्थों से सम्बन्ध प्रतीत होता है। काश्मीरी पण्डित उस समय गुजरात में आते-जाते थे, यह बिल्हण के अगमन से ही पता लगता है।
१-प्रबन्धचिन्तामणि हेमसूरिचरितम् ८३-पृष्ठ ७७-६८ । २-प्रभावक्चरित हेमप्रबन्ध श्लोक ३७-४६ तक पृष्ठ २६८-६६ विशेष के लिये लाईफ आफ हेमचन्द्र-द्वितीय अध्याय-डा० बूल्हर तथा प्रो० पारिख कृत काव्यानुशासन की प्रस्तावना पृष्ठ CCLXVI-CCLXIX