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________________ जीवन-वृत्त तथा रचनाएँ १६ किया है । यहअसत्य प्रतीत होता है । 'त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित' के १०वें पर्व की प्रशस्ति में आचार्य हेमचन्द्र ने अपने गुरु का स्पष्ट उल्लेख किया है। 'प्रभावक्चरित' एवं 'कुमारपालप्रबन्ध' के उल्लेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि हेमचन्द्र के गुरु देवचन्द्रसूरि ही रहे होंगे। विण्टरनित्ज महोदय ने एक मालाधारी हेमचन्द्र का उल्लेख किया है जो अभयदेवसूरि के शिष्य थे। डॉ. सतीशचन्द्र, आचार्य हेमचन्द्र को प्रद्युम्नसूरि का गुरुबन्धु लिखते है । हेमचन्द्र के गुरु श्री देवचन्द्रसूरि प्रकाण्ड विद्वान् थे । उन्होंने 'शान्तिनाथ चरित' एवं 'स्थानाङ्गवृति' ऐसे दो ग्रन्थ लिखे । अतः इसमें किसी प्रकार की आशङ्का की सम्भावना नहीं है कि हेमचन्द्र को किसी अन्य विद्वान् आचार्य ने शिक्षा प्रदान की होगी। देवचन्द्र ही उनके दीक्षागुरु तथा शिक्षागुरु या विद्यागुरु भी थे। यह सम्भव है कि उन्होंने कुछ अध्ययन अन्यत्र भी किया हो क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ काल उपरान्त हेमचन्द्र का अपने गुरु से अच्छा सम्बन्ध नहीं रहा। इस कारण उन्होंने अपनी कृतियों में गुरु का उल्लेख नहीं किया है । इस सम्बन्ध में श्री मेरूतुङ्गाचार्य ने 'प्रबन्धचिन्तामणि' में एक उपाख्यान दिया है जिससे उनके गुरुशिष्य सम्बन्ध पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। एक बार गुरु देवचंद्र ने हेमचन्द्र को स्वर्ण बनाने की कला बताने से इन्कार कर दिया क्योंकि उसने अन्य सरल विज्ञान की सुचारु रूप से शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, अतएव स्वर्णगुटिका की शिक्षा देना उन्होंने अनुचित समझा । हो सकता है, उक्त घटना ही गुरुशिष्य के मनमुटाव का कारण बन गई हो । १-शिष्यस्तस्य च तीर्थमकमवने पावित्र्यकृजङ्गमम् । सूर रितपः प्रभाववसतिः श्री देवचन्द्रोऽभवत् । आचार्यों हेमचन्द्रोऽभूतत्पादाम्बुजषट्पदः । तत्प्रसादादधिगतज्ञानसम्पन्महोदयः।।त्रिश०पु०च० प्रशस्ति -श्लोक १४, १५ २-ए हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर-विण्टरनित्ज, वाल्यूम टू, पृष्ठ ४८२-४८३ । ३-दी हिस्ट्री आफ इण्डियन लाजिक, पृष्ठ १०५, -डा. सतीशचन्द । ४-श्रीमान्ध्यन्द्रकुलेऽभवग्द्व णनिधिः प्रद्युम्नसूरि प्रभु, बन्धुर्यस्यच सिद्धहेमविधये श्री हेमसूर विधिः । उत्पाद सिद्धि प्रकरण टीकायां चन्द्रसेन कृतायाम् । ५-हीरालाल हंसराज कृत जैन इतिहास, भाग १, तथा वीरवंशावलि,पृष्ठ २१६ ।
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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