SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ आचार्य हेमचन्द्र इस महत्त्रयी का पाण्डित्य राजदरबार और जनसमाज में अग्रगण्य होने के लिये आवश्यक था । इन तीनों में हेमचन्द्र को अनन्य पाण्डित्य था। यह उनके उस विषय के ग्रन्थों से स्पष्ट दिखाई देता है। सोमचन्द्र की शिक्षा का प्रबन्ध स्तम्भतीर्थ में उदयन मन्त्री के घर ही हुआ था। प्रो० पारीख के मत से हेमचन्द्र ने गुरु देवचन्द्र के साथ देश-देशान्तर परिभ्रमण कर शास्त्रीय एवं व्यावहारिक ज्ञान की अभिवृद्धि की' । 'प्रभावक्चरित' के अनुसार आचार्य देवचन्द्रसूरि ने सात वर्ष आठ मास एक स्थान से दूसरे स्थान परिभ्रमण करते हुए और चार मास किसी सद्गृहस्थ के यहाँ निवास करते हुए व्यतीत किये । सोमचन्द्र भी बराबर उनके साथ रहे । अतः वे अल्पायु में ही शास्त्रों में तथा व्यावहारिक ज्ञान में निपुण हो गये । डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री के मतानुसार हेमचन्द्र नागपुर (नागौर मारवाड़) में धनद नामक सेठ के यहाँ तथा देवचन्द्रसूरि और मलयगिरि के साथ गौड़ देश के खिल्लर ग्राम गये थे तथा स्वयं काश्मीर गये थे। २१ वर्ष की अवस्था में ही इन्होंने समस्त शास्त्रों का मंथन कर अपने ज्ञान की वृद्धि की । अतः नागपुर के धनद नामक व्यापारी ने विक्रम सं० ११६६ में सूरिपद प्रदान महोत्सव सम्पन्न किया । इस प्रकार २१ वर्ष की अवस्था में सूरिपद को प्राप्त कर आचार्य हेमचन्द्र ने साहित्य और समाज की सेवा करना आरम्भ किया। इस नवीन आचार्य की विद्वता, तेज, प्रभाव और स्पृहणीय गुण, दर्शकों को सहज ही में अपनी ओर आकृष्ट करने लगे । 'प्रभावक्चरित' के अनुसार सोमचन्द्र के हेमचन्द्रसूरि बनने के पश्चात् उनकी माता ने भी जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण की और पुत्र के आग्रह पर वह सिंहासन पर बैठायी गयीं। (श्लोक ६१-६३) जिसकी विद्या प्राप्ति इतनी असाधारण थी उसने विद्याभ्यास किससे कहाँ और कैसे किया! यह कुतूहल स्वाभाविक है। परन्तु इस विषय में आवश्यक ज्ञातव्य सामग्री उपलब्ध नहीं है। उनके दीक्षा गुरु देवचन्द्रसूरि स्वयं विद्वान् थे । स्थानाङ्गसूत्र पर उनकी टीका प्रसिद्ध है। आचार्य हेमचन्द्र के गुरु कौन थे, इस विषय में कुछ मतभेद हैं । डॉ० बूल्हर का मत है कि उन्होंने अपने गुरु का नामोल्लेख किसी भी कृति में नहीं १-काव्यानुशासन की अंग्रेजी प्रस्तावना-प्रो० पारीख । २-आचार्य हेमचन्द्र और उनका शब्दानुशासन-एक अध्ययन, पृष्ठ १३, -नेमिचन्द्र शास्त्री।
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy