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आचार्य हेमचन्द्र
महोत्सव सम्पन्न किया' । चतुर्विध सङ्घ के समक्ष देवचन्द्राचार्य ने स्तम्भतीर्थ के पार्श्वनाथ चैत्यालय में धूमधामपूर्वक दीक्षा संस्कार सम्पादित किया और चाङ्गदेव को दीक्षानाम सोमचन्द्र दिया । बाद में वह बालक प्रतिभायुक्त होने के कारण अगस्त्य ऋषि के समान समस्त वाङ्मयरुप समुद्र को चुल्लू में रखकर पी गया। गुरु के दिये हुए हेमचन्द्र नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह ३६ सूरिगुणों से अलङ्कृत सूरिपद पर अभिषिक्त हुआ।
उपाध्याय जिनमण्डन के अनुसार एक बार जब चाङ्गदेव गुरु देवचन्द्रसूरि के आसन पर जा बैठा तब उन्होंने माता पाहिणी से कहा "सुश्राविके ! तूने एक बार जो स्वप्न की चर्चा की थी उसका फल आँखों के सामने आ गया है"। तदनन्तर देवचन्द्र सङ्घ के साथ चाङ्गदेव की याचना करने के लिये पाहिणी के निवास स्थान पर गये । पाहिणी ने घरवालों का विरोध सहकर भी अपना पुत्र देवचन्द्र को सौंप दिया।
राजशेखरसूरि के प्रबन्धकोश के अनुसार आचार्य देवचन्द्र की धर्मोपदेश सभा में नेमिनाग नामक श्रावक ने उठकर कहा कि 'भगवन्, यह मेरा भान्जा आपका उपदेश सुनकर प्रबुद्ध हो दीक्षा माँगता है । जब यह गर्भ में था तब मेरी बहन ने स्वप्न देखा था' । गुरुजी ने कहा 'इसके माता-पिता की अनुमति आवश्यक है।' इसके पश्चात् मामा नेमिनाग ने बहन के घर पहुंच कर भानजे के व्रत के लिये याचना की। माता-पिता के विरोध करने पर भी चाङ्गदेव ने दीक्षा धारण करली ।
प्रभावक्चरित के अनुसार जब चाङ्गदेव पाँच वर्ष का हुआ तब वह अपनी माता के साथ देव मन्दिर में गया । वहाँ माता पूजा करने लगी तो वह आचार्य देवचन्द्र की गद्दी पर जाकर बैठ गया। आचार्य ने पाहिणी को स्वप्न को याद दिलाई और उसे आदेश दिया कि वह अपने पुत्र को शिष्य के रुप में उन्हें समर्पित करदे । पाहिणी ने अपने पति की ओर से कठिनाई उपस्थित होने
१-इत्थं चाचिगे"मुमुदेतराम-प्रबन्धचिन्तामणिक-कुमारपालादि प्रबन्ध । २-चतुर्विध सङ्घ ''श्रावक, श्राविका, साधु, साध्वी । ३-प्रभावक्चरितम्-हेमचन्द्रसूरि प्रबन्धम् श्लोक ३६ । ४-कुमारपाल प्रबन्ध श्लोक,४५-५० । ५-प्रबन्ध कोश-१० हेमसूरिप्रबन्ध ।