________________
आचार्य हेमचन्द्र
माता का नाम 'पाहिणी देवी था। पिता के चाच्च, चाच, चाचिग ये तीनों नाम मिलते हैं। इनके वंशजों का निकास (निष्क्रमण) मोरा ग्राम से हुआ था। अत: यह मोढ़वंशीय कहलाये । आज भी इस वंश के वैश्य 'श्री मोढ़ बणिये' कहे जाते हैं। इनकी कुलदेवी 'चामुण्डा' और कुलयक्ष 'गोनस' था। मातापिता ने देवता-प्रीत्यर्थ उक्त दोनों देवताओं के आद्यन्तक्षर लेकर बालक का नाम चाङ्गदेव रखा । अतः आचार्य हेमचन्द्र का मूलनाम चाङ्गदेव पड़ा । माता-पिता के सम्प्रदाय के विषय में कुछ सङ्केत मात्र प्राप्त होते हैं। राजशेखरसूरि के प्रबन्धकोश के अनुसार बालक चाङ्गदेव की माता पाहिणी और मामा नेमिनाग दोनों ही जैन धर्मावलम्बी थे। इसकी पुष्टि 'कुमारपाल प्रबन्ध में' जिनमण्डनोपाध्याय ने भी की है। पुरातन प्रबन्ध सङग्रहकार तथा मेरुतुङ्गाचार्य दोनों इस विषय में मौन है, किन्तु इनके पिता को मिथ्यात्वी कहा गया है । प्रबन्धचिन्तामणि के अनुसार इनके पिता शैव प्रतीत होते हैं, क्योंकि उदयनमन्त्री द्वारा रुपये दिये जाने पर उन्होंने 'शिव निर्माल्य' शब्द का व्यवहार किया है और उन रुपयों को शिवनिर्माल्य के समान त्याज्य कहा है" । कुलदेवी का चामुण्डा होना भी यह सङकेत करता है कि वंश-परम्परा से इनका परिवार शिव-पार्वती का उपासक था। गुजरात में ग्यारहवीं शती में शैव-मत की प्रधानता रही है क्योंकि चालुक्यों के समय में गुजरात में गांव-गांव में सुन्दर शिवालय सुशोभित थे। संध्या समय उन शिवालयों में होने वाली शंख ध्वनि और घण्टानाद से सारा गुजरात गुञ्जित हो जाता था ।
पाहिणी के जैन धर्मावलम्बिनो और चाचिग के शैव धर्मावलम्बी होकर एक साथ रहने में कोई विरोध नहीं आता है। प्राचीनकाल में दक्षिण भारत
१-चाहिणी-कुमारपाल प्रतिबोध, तथा पुरातन प्रबन्ध सङग्रह, गेहिनि पाहिनि
तस्य देहिनी मन्दिरेन्दरा-प्रभावक् चरित श्लोक-८४८ पृष्ठ ३३७, चङ्गी
वीर वंशावलि-साहित्य संशोधक त्रैमासिक खण्ड १ अंक ३ पुनः २-कुमारपाल प्रतिबोध पृष्ठ ४७८, बॉम्बे गज़ीटियर पेज १९१ ।
प्रबन्धचिन्तामणि-हेमप्रभसूरि चरित्रम् पृष्ठ ८३। ३-एकदा नेमिनाग नाम्ना....दीक्षा याचते । प्रवन्धकोश हेमसूरि प्रबन्ध । ४-पुरातन प्रबन्ध सडग्रह तथा प्रबन्ध चिन्तामणि, पृष्ठ ७५, ७७ तथा ८३ । ५-प्रबन्ध चिन्तामणि हेमसूरि चरित्रम्,....चाचिगः तं वृतान्तं....शिवनिर्माल्य
मिवास्पृश्यो मे द्रव्य-संचयः ।