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जीवन-वृत्त तथा रचनाएँ
प्रकार व्यसनों को छोड़कर वैराग्य धारण किया, इसका वर्णन 'मोहराजपराजय' में पाया जाता है। सोमप्रभसूरि के 'कुमारपाल प्रतिबोध' में हेमचन्द्र द्वारा कुमारपाल के लिये समय-समय पर दिया हुआ उपदेश सङग्रहीत है। लेखक का मत है कि यद्यपि सामग्री बहुत है फिर भी केवल जैन धर्मानुकूल सामग्री का ही उपयोग किया गया है, जैसे पाकशाला में अनेक पदार्थ होने पर भी कोई अपनी रुचि के अनुसार ही पदार्थ ग्रहण करता है । यह ग्रन्थ हेमचन्द्र की मृत्यु के ग्यारह-बारह वर्ष पश्चात् ही प्रकाशित हुआ। लोकश्रुति है कि इस ग्रन्थ की रचना हेमचन्द्र के निवासगृह में ही की गयी थी तथा उनके तीन शिष्यों ने इसका सम्पूर्ण पाठ सुना था । अतः हेमचन्द्र के जीवनचरित्र के विषय में यह ग्रन्थ सबसे अधिक प्रामाणिक माना जाना चाहिये, किन्तु खेद है कि केवल इसके आधार पर अचार्यजी का जीवन-चरित्र लिपिबद्ध करना कठिन ही नहीं वरन् असम्भव है । इस ग्रन्थ में उनके धर्मोपदेश का ही विशेष वर्णन है तथा जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ छोड़ दी गई हैं और कुछ घटनाओं का काव्यमय अतिरक्षित वर्णन किया गया है । अतः आचार्य हेमचन्द्र का जीवन-चरित्र लिखने के समय श्री सोमप्रभसूरि के ग्रन्थ को आधार मानकर दूसरे अन्य लेखकों द्वारा निर्दिष्ट सामग्री का उपयोग करना भी आवश्यक प्रतीत होता है। जीवन-चरित
आचार्य हेमचन्द्र का जन्म गुजरात में अहमदाबाद से साठ मील दूर दक्षिण-पश्चिम में स्थित 'धुन्धुका' नगर में वि. सं. ११४५ में कार्तिकी पूर्णिमा की रात्रि में हुआ था । संस्कृत ग्रन्थ में इसे 'धुन्धुक्क नगर' या 'धुन्धुकपुर' भी कहा गया है। यह प्राचीन काल में सुप्रसिद्ध एवं समृद्धिशाली नगर था । इनके माता-पिता मोढ़ वंशीय वैश्य थे। पिता का नाम 'चाचिग अथवा चाच' और
१-कुमारपाल प्रतिबोध-गायकवाड़ ओरियण्टल सीरीज बड़ौदा १९२०
पृष्ठ ३-श्लोक ३०-३१ २-प्रभावक् चरित-प्रभाचन्द्रसूरि-हेमसूरि प्रबन्ध, श्लोक ११-१२ धुन्धुक्कपुरातन प्रबन्ध संग्रह, धुन्धुक्कपुर-प्रबन्धकोश, धुन्धुक्क-प्रबन्ध चिन्तामणि बन्धूक-प्रभावक्चरित ।
'बंधूकमिव बन्धूकं देशे तत्रास्ति सत्पुरम्' ३-मोढ़कुले-पुरातन प्रबन्ध सङग्रह, मोढ़ : ज्ञातीय-प्रबन्धकोश, मोढ़वंशेप्रबन्धचिन्तामणि,