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- आचार्य हेमचन्द्र
समान ही है । हेमचन्द्रसूरी के सम्बन्ध में एक जगह ग्रन्थकार स्वयं कहते हैं कि इन आचार्य के जीवन के सम्बन्ध में जो-जो बातें प्रबन्धचिन्तामणि ग्रन्थ में लिखी गईं हैं, उनका वर्णन करना चर्वित-चर्वण मात्र होगा। हम यहाँ पर कुछ नवीन विवरण ही प्रस्तुत करना चाहते हैं। फिर भी प्रबन्धचिन्तामणी की अपेक्षा भनेक विशिष्ट और विश्वसनीय बातों का इसमें सङ्कलन है। इसमें 'हेमसूरि प्रबन्ध' आचार्य हेमचन्द्र के जीवन से सम्बन्धित है।
'पुरातन प्रबन्ध सङग्रह' ऐतिहासिक प्रबन्धों एक का संग्रह है जो 'प्रबन्ध चिन्तामणि' से सम्बद्ध है। इसमें हेमचन्द्र के जीवन का विशद रुप से वर्णन किया गया है। उनके विषय में किंवदन्तियों का भी यहाँ संङग्रह किया गयाहै । 'पुरातन प्रबन्ध-संङग्रह' के हेमचन्द्रसूरि के प्रबन्धों में ५८, ५६, ६०, ६१ तथा ६३ संख्या के प्रकरणों और 'प्रबन्धकोश संङग्रह' के ८३, ८४, ८५ तथा ८६ प्रकरणों में समानता है । अतः 'पुरातनप्रबन्ध संङग्रह' हेमचन्द्र का जीवन लिपिबद्ध करने में अत्यन्त सहायक है। सम्भवतः डॉ. बूल्हर अपने ग्रन्थ में इसका उपयोग नहीं कर पाये।
आचार्य जिनमण्डनोपाध्याय के 'कुमारपाल प्रबन्ध' में विशेष रुप से कुमारपाल द्वारा मान्य हिंसाऽहिंसा का वर्णन है। इसमें हेमचन्द्र-विषयक कोई नवीन जानकारी नहीं है । प्रबन्धकोश में वर्णित जानकारी ही इन्होंने भी दी है। इसके साथ ही जयसिंहसूरि तथा चारित्र सुन्दरगणि का 'कुमारपाल चरित' भी देखने योग्य है । चन्द्रसूरि का 'मुनिसुव्रतस्वामिचरित' भी इस दृष्टि से उपादेय
इतने विश्वसनीय ग्रन्थ होते हुए भी श्री सोमप्रभाचार्य विरचित 'कुमारपाल प्रतिबोध' तथा यशःपाल के 'मोहराजपराजय' के बिना आचार्य हेमचन्द्र का जीवन प्रामाणिकता से नहीं लिखा जा सकता । समकालीन होने से इन दोनों का महत्त्व कहीं अधिक है । श्री सोमप्रभसूरि तथा यशपाल दोनों ही हेमचन्द्र के लघुवयस्क समकालीन थे । 'मोहराजपराजय' नाटक में हेमचन्द्र के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है, यद्यपि चरित्राङ्कन करना उसका ध्येय नहीं है। विशेष रुप से हेमचन्द्र के उपदेश प्रभाव से तत्कालीन राजा कुमारपाल ने किस १ -किं चर्वित चर्वणेन ? नवीनास्तु केचन प्रबन्धाः प्रकाश्यन्ते
प्रबन्धकोशः हेमचन्द्रसूरि प्रबन्ध-१०