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जीवन-वृत्त तथा रचनाएँ
अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपादेय है । इसमें डॉ. बूल्हर ने ( १ ) प्रभावक् चरित (२) प्रबन्ध चिन्तामणि (३) प्रबन्धकोश (४) कुमारपाल प्रवन्ध तथा द्वयाश्रय काव्य, सिद्ध हेमप्रशस्ति और महावीर चरित का उपयोग किया है ।
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प्रामाणिकता के विषय में ऊपर निर्दिष्ट चारों ग्रन्थ विश्वसनीय माने जाते हैं । गुजरात के प्राचीन इतिहास की विशिष्ट श्रुति और स्मृति के आधार भूत जितने भी प्रबन्धात्मक और चरित्रात्मक ग्रन्थ, निबन्ध आदि संस्कृत या प्राचीन देशी भाषा में उपलब्ध होते हैं उन सबमें प्रबन्ध चिन्तामणि का स्थान विशिष्ट और अधिक महत्व का है ' । श्री राजशेखरसूरि ने अपने 'प्रबन्धकोष' में, जिनप्रभसूरि ने 'विविधतीर्थकल्प' में, जिनमण्डनोपाध्याय ने 'कुमारपालप्रबन्ध' में, जयसिंहसूरि ने 'कुमारपाल प्रबोध प्रबन्ध' में, तथा इनके बाद कई ग्रन्थकारों ने अपने ग्रन्थों में प्रबन्धचिन्तामणि का उपयोग किया है। श्री अलेकजेण्डर किन्लॉक फार्बस् ने इसका उपयोग 'रसमाला' में किया है । बम्बई सरकार ने बम्बई गजेटियर में भी इसका उपयोग किया है । श्री सी. एच. टॉनी ने ई० स० १९०१ में सर्वप्रथम इसका अङ्ग्रेजी में अनुवाद किया जो कलकत्ता एशियाटिक सोसायटी ने प्रकाशित किया । यह ग्रन्थ प्रधानतया ऐतिहासिक प्रबन्धों का सङ्ग्रह रूप है । इसमें सिद्धराज जयसिंह एवं कुमारपाल के समय का वर्णन आधारभूत और ऐतिहासिक है । इनकी सत्यता शिला लेखों एवं ताम्रपट्टों आदि से सिद्ध होती है । प्रबन्धचिन्तामणि में सिद्धराजादि एवं कुमारपालादि प्रबन्धों में आचार्य हेमचन्द्र के जीवन से सम्बन्धित पर्याप्त जानकारी मिलती है ।
श्री प्रभाचन्द्रसूरि विरचित प्रभावक् चरित भी बड़े महत्व का ऐतिहासिक ग्रन्थ है । इन्होंने आचार्य हेमचन्द्र के 'त्रिषष्ठिशलाका - पुरुषचरित' से प्रेरणा प्राप्त कर हेमचन्द्र के 'परिशष्ठपर्वन्' से आगे आचार्यों का वर्णन प्रारम्भ कर हेमचन्द्रसूरि तक आचार्यों के चरित्र का वर्णन किया है। इसमें तत्कालीन राजाओं के तथा आचार्यों के सम्बन्ध में प्रसंगानुसार ऐतिहासिक विवरण है । महाकवि और प्रभावशाली धर्माचार्यों के सम्बंध में ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करनेवाला इस कोटि का दूसरा ग्रन्थ नहीं है ।
श्री राजशेखरसूरि कृत प्रबन्धकोश बहुत कुछ प्रबन्धचिन्तामणि के १ - प्रबन्धचिन्तामणि - अनु. हजारीप्रसाद द्विवेदी - सिन्धी जैन ग्रन्थमाला, १९४० प्रस्तावना