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आचार्य हेमचन्द्र
२. सिद्धहेम शब्दानुशासन-प्रशस्ति
३. त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित के अन्तर्गत -महावीरचरितम् यद्यपि केवल अन्तःसाक्ष्य के आधार पर उनका सुसम्बद्ध जोवन तो लिपिबद्ध नहीं हो सकता, किन्तु जीवन की घटनाओं पर तथा उनके विचारों पर अवश्य प्रकाश पड़ता है।
(२) बहिःसाक्ष्य की प्रामाणिकता और उसके आधार पर जीवनी के सङ्केत .
बहिःसाक्ष्य के अन्तर्गत आचार्य हेमचन्द्र के चरित्र विषयक निम्नाङ्कित ग्रन्थ आधार माने जाते हैं१. शतार्थकाव्य ] श्री सोमप्रभरि २. कुमार-पाल प्रतिबोध ] लघुवयस्क समकालीन वि. सं. १२४१ ३. मोहराज पराजय __ मन्त्री यशपाल वि. सं. १२२८ से १२३२ ४. पुरातन प्रबन्धसंग्रह अज्ञात ५. प्रभावक् चरित श्री प्रभाचन्द्रसूरि वि. सं. १३३४ ६. प्रबन्धचिन्तामणि श्री मेरुतुङ्गाचार्य वि. सं. १३६१ ७. प्रबन्धकोश
श्री राजशेखरसूरि वि. सं. १४०५ ८. कुमारपाल प्रबन्ध श्री उपाध्याय जिनमण्डन वि. सं. १३६२ ६. कुमारपाल प्रबोध प्रबन्ध] श्री जयसिंहसूरि वि. सं. १४२२ १०. कुमारपाल चरितम् ] ११. विविधतीर्थकल्प श्री जिनप्रभसूरि वि. सं. १३८६ १२ रसमाला
श्री अलेक्जण्डर ई. स. १८७८
किन्लॉक फाळ १३. लाईफ ऑफ हेमचन्द्र श्री डॉ. बूल्हर ई. स. १८८६
___ आधुनिक काल में उपलब्ध सामग्री के आधार पर सर्वप्रथम जर्मन विद्वान् डॉ. बूल्हर ने ई. स. १८८६ में वियना में आचार्य हेमचन्द्र का जीवन चरित्र लिखा। उनकी यह पुस्तक मूलतः जर्मन भाषा में प्रकाशित हुई । तत्पश्चात् प्रो. डॉ. मणिलाल पटेल ने ई०स० १६३६ में इसका अङ्ग्रेजी अनुवाद किया जिसे सिन्धी-जैन ज्ञानपीठ, विश्वभारती, शान्ति-निकेतन ने प्रकाशित किया। आचार्य हेमचन्द्र के जीवन-चरित्र का अध्ययन करने के लिये यह पुस्तक