________________
हेमचन्द्र की बहुमुखी प्रतिभा
१६५
हेमचन्द्र का महत्व सदैव अक्षुण्ण रहेगा। संस्कृत साहित्य पर भी उनका प्रभाव अमिट है । आचार्य हेमचन्द्र के कारण संस्कृत साहित्य परिपुष्ट, प्रफुल्लित एवं विकसित हुआ है और उसकी गरिमा बढ़ी है। प्राकृत तथा अपभ्रंश साहित्य की दृष्टि से भी उनकी कृतियाँ बहुमूल्य हैं। हेमचन्द्र की साहित्य सेवा का मूल्याङकन:
अपारे काव्य संसारे कविरेक: प्रजापतिः ।
यथा स्मै रोचते विश्वं तथा विपरिवर्तते ॥ इस अपार काव्य-संसार में कवि ही एकमात्र प्रजापति होता है । साहित्य की विपुलता एवं विस्तार की दृष्टि से आचार्य हेमचन्द्र 'साहित्य सम्नाट' की उपाधि के योग्य हैं। किंबहुना यथार्थता की दृष्टि से यह उपाधि भी बहुत छोटी है । आजतक विशालकाय ग्रन्थ-रचना की दृष्टि से महाभारतकार महर्षि व्यास ही सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थकार माने जाते रहे और उनका सर्वग्राहित्व बताने के लिये 'व्यासोच्छिष्टं जगत् सर्वम्' यह कहावत प्रसिद्ध हुई, किन्तु आचार्य हेमचन्द्र के विशालकाय विपुल ग्रन्थसमूह को देखकर 'हेमोच्छिष्टं तु साहित्यम्' ऐसा भी यदि कहा गया तो वह अत्युक्ति न होगी।
श्री हेमचन्द्राचार्य का वास्तविक मूल्य उनकी विविधता और सर्वदेशीयता में है। उन्होंने व्याकरण-काव्य, न्याय, कोश, चरित, योग, साहित्य, छन्दकिसी भी विषय की उपेक्षा नहीं की और प्रत्येक विषय की अतिविशिष्ट सेवा की है । लोग इनके कोश देखें अथवा व्याकरण पढ़ें, योग देखें अथवा अलङकार देखें, उनकी प्रतिभा सार्वत्रिक है। उनका अभ्यास परिपूर्ण है। उनको विषय की छानबीन सर्वावयवी है। ऐसे महान् पुरुष को समुचित न्याय देने के लिये तो अनेक मण्डल आजीवन अभ्यास करें तो ही कुछ परिणाम आ सकता है । आगम प्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजी द्वारा प्रस्तुत हेमचन्द्राचार्य-कृतियों का संख्या-निर्माण निम्नानुसार है:सिद्धहेमलघुवृत्ति
६,००० श्लोक सिद्धहेमबृहद्वृत्ति
१८,००० श्लोक सिद्धहेमबृहन्न्यास
८४,००० श्लोक सिद्धहेमप्राकृतिवृत्ति ।
२,२०० श्लोक लिङ्गानुशासन
३,६८४ , उगादिगण विवरण
३,२५० , धातु पारायण विवरण
५,६०० ॥