________________
१९४
- आचार्य हेमचन्द्र
गणी, राजशेखरसूरि ( वि० सं० १४०५) इत्यादि लेखक आचार्य हेमचन्द्र से पूर्णतया प्रभावित थे । आचार्य जी का 'काव्यानुशासन' देखकर तत्कालीन मन्त्री वागभट ने भी 'काव्यानुशासन' की रचना की। डॉ. कीथ के अनुसार इसमें हेमचन्द्र का असफल अनुकरण किया गया है । काव्य के क्षेत्र में भी आचार्य हेमचन्द्र की परम्परा आगे एक शती तक पल्लवित होती रही। कथापुराण के क्षेत्र में उनका अनुकरण पर्याप्त मात्रा में हुआ है।
आचार्य हेमचन्द्र के ग्रन्थ निश्चय ही संस्कृत साहित्य के अलंकार हैं। वे लक्षणा, साहित्य, तर्क, ब्याकरण एवं दर्शन के परमाचार्य हैं। आचार्य हेमचन्द्र की साहित्य-साधना बहुत विशाल एवं व्यापक है। विद्वत्ता तो जैसे उनकी जन्मजात सम्पत्ति है । व्याकरण, छन्द, अलङकार, कोश एवं काव्यविषयक इनकी रचनाएँ अनुपम हैं। इनके ग्रन्थ रोचक, मर्मस्पर्शी एवं सजीव हैं। पश्चिम के विद्वान् इनके साहित्य पर इतने मुग्ध हैं कि उन्होंने इन्हें 'Ocean of Knowledge'- ज्ञान का महासागर कहा है। इनकी प्रत्येक रचना में नया दृष्टिकोण,
और नयी शैली वर्तमान है। जीवन को संस्कृत, सम्बन्धित और संचालित करने वाले जितने पहलू होते हैं उन सभी को उन्होंने अपनी लेखनी का विषय बनाया है। श्री सोमप्रभसूरि ने इनकी सर्वांगीण प्रतिभा की प्रशंसा करते हुए लिखा है :
क्लप्तं व्याकरणं नवं विरचितं छन्दो नवो द्वयाश्रया। लंकारो प्रथितो नवौ प्रकटितं श्री योगशास्त्रम् नवम् ॥ तर्कः संजनि तो नवो, जिन वरादीनां चरित्रं नवम् ।
बद्धं येन न केन केन विधिना मोहः कृतो दूरतः ॥
आचार्य हेमचन्द्र की विद्वत्ता जन्मजात सम्पत्ति थी, तो हृदय भक्त का मिला था, 'अर्हन्त स्तोत्र', 'महावीर स्तोत्र', 'महादेव स्तोत्र' इसके ज्वलन्त प्रमाण हैं। उनमें रस है, आनन्द है, और है हृदय को आराध्य में तल्लीन करने की सहज प्रवृत्ति । जैन साहित्य में, विशेषकर उसके धार्मिक क्षेत्र में, आचार्य हेमचन्द्र का नाम अग्रणी है। गुजरात में तो जैन-सम्प्रदाय के विस्तार का सबसे अधिक श्रेय इन्हें ही है।
आचार्य हेमचन्द्र केवल शास्त्रों के निर्माता ही नहीं थे किन्तु सुन्दर काव्य के रचयिता भी थे। वे पण्डित कवि थे, शास्त्र कवि थे तथा पुराणेतिहासज्ञ भी थे। उनके काव्य में पाण्डित्य, शास्त्र ( व्याकरण ) तथा इतिहास की त्रिवेणी का संगम हुआ है । आचार्य हेमचन्द्र ने एक ही काव्य में अश्वघोष, हर्ष तथा भट्टि का मधुर सङगम किया है। इस दृष्टि से संस्कृत साहित्य में बाचार्य