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हेमचन्द्र की बहुमुखी प्रतिभा
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विजय प्रकरण', और बालचन्द्र गणी ने 'स्नातस्था' नामक काव्य की रचना की। उदयचन्द्र का नाम व्याकरण की बृहद्वृत्ति की टीका की प्रशस्ति में आया है। 'कुमार विहार-प्रशस्ति' में वर्धमान गणी का नाम भी मिलता है। 'सुपार्श्वनाथ चरित' के कर्ता लक्ष्मणगणी श्री चन्द्रसूरि के गुरुभाई और हेमचन्द्रसूरि के शिष्य थे। उन्होंने वि० सं० ११९६ में राजा कुमारपाल के राज्याभिषेक के वर्ष में इस ग्रन्थ की रचना की। लेखक ने आरम्भ में हरिभद्रसूरि आदि आचार्यो का बड़े आदरपूर्वक उल्लेख किया है। 'महावीर चरित' के अध्ययन से लेखक गुणचन्द्र गणी (वि०सं० ११३९) के मन्त्र-तन्त्र विद्यासाधन तथा वाममागियों और कापालिकों के क्रियाकाण्ड आदि के विशाल ज्ञान का पता लगता है । गुणचन्द्रगणी के ही ग्रन्थ 'पार्श्वनाथ चरित' ( वि० सं० ११६८ ) में भी मन्त्र-तन्त्रों में कुशल वाममार्ग में निपुण भागुरायण नाम का पात्र रहता है।
___डा० विन्टरनीज अपने भारतीय साहित्य के इतिहास में अमरचन्द्र के 'पद्मानन्द' महाकाव्य का उल्लेख करते हैं जिसमें आचार्य हेमचन्द्र का अनुकरण किया गया है । आचार्य हेमचन्द्र के स्तोत्रों से प्रभावित होकर १४ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में श्री जिनप्रभसूरि ने "चतुर्विंशतिजिनस्तोत्रम्" और "चतुर्विंशतिजिनस्तुतयः" की रचना की। हेमचन्द्राचार्य के "नेमिस्तवन" से प्रभावित होकर उनके शिष्य श्री रामचन्द्रसूरि ने १७ साधारण जिनस्तवन् 'श्री मुनि सुव्रत देवस्तवः' और 'श्री नेमिजिनस्तवः' की रचना की थी। पण्डित आशाधर का सहस्त्रनामस्तवन सुखसागरीय और स्वोपज्ञवृत्तियों के साथ प्रकाशित हो चुका है । 'विविधतीर्थ कल्प' के कर्ता श्री जिनप्रभसूरि के 'उज्जयन्तस्तव', 'ढीपुरीस्तव', 'हस्तिनापुरतीर्थस्तवन' और 'पञ्च कल्याणक स्तवन' विविध तीर्थ कल्प में निबद्ध हैं । हरिभद्र जिनचन्द्रसूरि के शिष्य श्रीचन्द्र के शिष्य थे। कवि ने ग्रन्थ रचना अणहिलपाटन-पतन में वि० सं० १२१६ में की थी। हरिभद्र ने सिद्धराज और कुमारपाल के आमात्य पृथ्वीपाल के आश्रय में रहकर अपने ग्रन्थ की रचना की थी।
साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र में परवर्ती संस्कृत लेखकों पर आचार्य हेमचन्द्र का प्रभाव परिलक्षित होता है। प्रभाचन्द्रसूरि का "प्रभावकचरित" निःसन्देह आचार्य हेमचन्द्र के 'परिशिष्ठपर्वन्' से प्रभावित है। 'कुमारपाल प्रतिबोध' के रचियता सोमप्रभाचार्य एवं (मोहराजपराजय' नाटक के लेखक यशपाल तो आचार्य हेमचन्द्र के लघुवयस्क समकालीन ही थे। इनके अतिरिक्त जयसिंहसूरि (वि० सं० १४२२) जिनमण्डन उपाध्याय (वि० सं० १४६२) चरित्र सुन्दर