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हेमचन्द्र की बहुमुखी प्रतिभा
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साहित्य में देखने को मिलता है । जैन धर्म की अनेकान्त दृष्टि से वे इतने समरस न्वय भावना का विकास ही किया है । जैन दार्शनिकों ने वैदिक, आस्तिक,बौद्धादि दार्शनिकों के विचारों का गम्भीर अध्ययन करने के पश्चात् ही अपने तत्वदर्शन की रचना की है। इसीलिये परस्पर-विरोधी विचार-पद्धतियों का समन्वय करने वाले 'अनेकान्तवाद' का निर्माण वे कर सके । जैन दार्शनिकों का कथन है कि प्रत्येक वस्तु अनन्तधर्मात्मक होती है। किसी वस्तु के सम्बन्ध में हम जो कुछ विचार करते हैं, उसकी सत्यता हमारी विशेष दृष्टि पर निर्भर करती है। हमें यह स्मरण रखना चाहिये कि किसी विषय में कोई एक मत एकान्त सत्य नहीं होता, दूसरों के मत भी सत्य हो सकते हैं। इसीलिये जैन-दर्शन में अन्यान्य मतों के प्रति समादर का भाव विद्यमान है, आचार्य हेमचन्द्र ने अपने साहित्य में इसी समन्वय-भावना का विकास किया है।
'योगशास्त्र' में ध्यानयोग, आसन, आदि का वर्णन उन्होंने पातञ्जलयोग के सदृश ही किया है। यह भी उनकी असंकीर्णता का परिचायक है। उनके मोक्ष का आनन्द भी वैदिक मोक्ष के समान ही है । आचार्य हेमचन्द्र ने 'संस्कृत द्वयाश्रय काव्य' में अर्हन तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश का एक रूपत्व दिखाया है। उसमें शिवस्तुति भी प्रचुर मात्रा में की गयी है तथा बीसवें सर्ग में तो शिवभक्ति का सुन्दर वर्णन मिलता है । इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण 'द्वयाश्रय काव्य में शिवमहिमा का वातावरण एवं वैदिक संस्कृति का प्रभाव है। इस दृष्टि से उनका साहित्य ब्राह्मण संस्कृति से प्रभावित है, ऐसा कहा जा सकता है । योगशास्त्र में रूपस्थ ध्यान का वर्णन करते समय अष्टम प्रकाश में ब्राह्मण-मन्त्रों के ऊँ ह्रीं इत्यादि बीजाक्षर वैसे के वैसे ही आचार्य हेमचन्द्र ने स्वीकार किये हैं। पदस्थ ध्यान में भी वैदिकों के मन्त्रशास्त्र की पद्धति को स्वीकार किया है। अन्तर इतना ही है कि वे प्रणव के साथ "अर्हन" पद जोड़ देते हैं । उनके साहित्य में पुराणों के दृष्टान्त, स्वर्ग के इन्द्रादि देवताओं का वर्णन भी पाया जाता है। पूजा-पद्धति भी पौराणिकों के अनुसार पायी जाती है । इसलिये वे स्वयं जैनाचार्य होते हुवे भी सौमेश्वर की यात्रा में कुमारपाल के साथ गये थे तथा पञ्चोपचार विधि से उन्होंने भगवान शिव का पूजन किया। भगवान् की मनौती किये जाने का भी वर्णन उनके साहित्य में आता है । साधना, आत्मसाक्षात्कार, समाधि का आनन्द इत्यादि सब बातें वैदिक दर्शनानुसार ही उनके साहित्य में पायी जाती हैं । पुष्पोञ्चय, सम्माजन, दक्षिणा इत्यादि बातों का वैदिक संस्कृति के अनुरूप मधुर चित्र उनके १ -दयाश्रय-१७६ तथा ५।१३३