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________________ १७६ आचार्य हेमचन्द्र ने अपने व्याकरण की बृहद् बृत्ति में कतिपय शिक्षासूत्रों को उद्धृत किया है। व्याकरण की रचना में यह असामान्य बात है। 'शब्दानुशासन' की दूसरी विशेषता यह है कि संस्कृत व्याकरण के साथ ही साथ वह प्राकृत तथा अपभ्रंश का भी प्रामाणिक व्याकरण है । उन्होंने अपने व्याकरण पर दो वृत्तियां लिखी हैं, एक लघुवृत्ति तथा दूसरी बृहद्वृत्ति । इसके अतिरिक्त स्वोपज्ञवृत्ति सहित धातूपारायण उणादि तथा लिङ्गानुशासन भी उन्होंने लिखा है। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने ध्याकरण पर एक वृहन्नयास भी लिखा है । पण्डित भगवानदास ने इसका अन्वेषण तथा सम्पादन किया है। कहते हैं कि उसमें ८४,००० हजार श्लोक थे । सम्पादित अंश को देखकर हम उसकी सत्यता के विषय में निश्चित अनुमान कर सकते हैं। ___ इतनी विशाल एवं विराट् कृति को आश्चर्य जनक रुप से आचार्य जी ने अकेले ही सृजित किया है। हेमचन्द्र का व्याकरणशास्त्र में यह योगदान महत्वपूर्ण है । किन्तु शब्दानुशासन को ही सम्पूर्ण न मानकर शब्दशास्त्र की सम्पूर्णता के लिये उन्होंने चार कोश ग्रन्थ लिखे । इतने पर भी आचार्य हेमचन्द्र ने विश्राम नहीं किया। उन्होंने अपने व्याकरण की सोदाहरण व्याख्या करने के लिए शास्त्रका व्य की भी रचना की । व्याकरण के क्षेत्र में इतना विशाल योगदान पतञ्जलि के बाद अन्य किसी भी वैयाकरण ने नहीं किया। प्राकृत व्याकरण में अपभ्रश का प्रकरण तो उनकी अन्यतम विशेषता है ही किन्तु अपभ्रश के जो उदाहरण उन्होंने प्रस्तुत किये है वे अपभ्रश साहित्य के मौलिक रत्न भी हैं। हेमचन्द्र प्राकृत और अपभ्रश साहित्य के उच्चकोटि के आचार्य थे। अपभ्रंश तथा आंचलिक बोलियों तथा विभिन्न विषयों का इतना बड़ा विशेषज्ञ उस युग में और कोई नहीं हुआ। पाणिनि और सायण से इनका महत्व किसी प्रकार कम नहीं था। अपभ्रश भाषा और साहित्य को हेमचन्द्र को देन- अपभ्रंश शब्द का अर्थ है शिष्टेतर या शब्द का बिगड़ा हुआ रूप । यह शब्द अपाणिनीय रूप के लिये प्रयुक्त होता था। अपभ्रश मध्यकालीन और आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की बीच की कड़ी है, जिसका अधिक लगाव परवर्ती अर्थात् भारतीय आर्य भाषाओं से है । अपभ्रंश के अनेक नाम मिलते हैं, यथा अपभ्रंश, अवहंश, अपभ्रष्ट, अवहट्ट इत्यादि । महर्षि पतञ्जलि ने अपने महाभाष्य में लिखा है कि, "भूयांसोऽपशब्दाः अल्पीयांसः शब्दाः । एकैकस्य हि शब्दस्य बहवोऽपभ्रशाः तद्यथा-गौरित्यस्य शब्दस्य गावी, गोणी, गोता, गोपोतलिका इत्येवमादयोऽपभ्रशाः" । अर्थात् अपशब्द
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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