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________________ हेमचन्द्र की बहुमुखी प्रतिभा १७५ था। उस समय सिद्धराज जयसिंह उज्जैन में आये । 'प्रभावक चरित' के अनुसार जब अधिकारीगण सिद्धराज जयसिंह को उज्जैन का ग्रन्थालय दिखा रहे थे तब उनकी दृष्टि व्याकरण ग्रन्थ पर पड़ी। हेमचन्द्राचार्य ने बतलाया, यह शब्दशास्त्र पर ग्रन्थ है । इसी तरह अलङकारशास्त्र, दैवज्ञशास्त्र, तर्कशास्त्र, इत्यादि के ग्रन्थ वे बताते रहे । राजा ने पूछा, 'क्या हमारे यहाँ कोई विद्वान नहीं जो इस प्रकार शास्त्रीय ग्रन्थ रचना कर सके'। सब लोग हेमचन्द्राचार्य को तरफ देखने लगे। राजा ने हेमचन्द्र से इस सम्बन्ध में पुनः पुनः प्रार्थना की' तब हेमचन्द्र ने कहा, 'कर्तव्यनिर्देश के लिये आपके शब्द पर्याप्त हैं । भारतीय देवी के ग्रन्थालय में ८ व्याकरण ग्रन्थ हैं। उन ग्रन्थों को काश्मीर से मंगाइये। तत्पश्चात हेमचन्द्र ने उपलब्ध विभिन्न व्याकरणों का सम्यक अध्ययन कर सिद्धराज जयसिंह के नाम के साथ जोड़कर "सिद्ध हेम शब्दानुशासन" नामक ग्रन्थ रचा । जितने प्राचीन आर्ष व्याकरण बने उनमें सम्प्रति एकमात्र पाणिनीय व्याकरण ही साङ्गोपाङ्ग उपलब्ध होता हैं । पाणिनि के पश्चात् कई शताब्दियों तक व्याकरण के क्षेत्र में पाणिनि का ही साम्राज्य रहा है । वार्तिककार कात्यायन तथा महाभाष्यकार पतञ्जलि ने अपने बहुमूल्य ग्रन्थों से पाणिनि का ही गौरव बढ़ाया है । कैयट ने 'महाभाष्य प्रदीप' लिखकर तथा जयादित्य वामन ने 'काशिका-वृत्ति' लिखकर, जिनेन्द्रबुद्धि ने 'न्यास' ग्रन्थ लिखकर इस परम्परा को परमोच्च चोटी तक पहुँचाया, किन्तु इस परम्परा में कुछ परिवर्तन कर, व्याकरण की नयी प्रणाली को जन्म देने का श्रेय आचार्य हेमचन्द्र को ही है। पाणिनि के 'अष्टाध्यायी' में प्रक्रियानुसार प्रकरण रचना नहीं है । कातन्त्र की प्रक्रियानुसारी परम्परा को पुनरुज्जीवित कर आचार्य हेमचन्द्र ने व्याकरण के क्षेत्र में स्वयं का एक 'हैम सम्प्रदाय' निर्माण किया। हेमचन्द्र के प्रकरणानुसारी 'सिद्धहैम' अथवा 'शब्दानुशासन' का परवर्ती वैयाकरणों पर इतना प्रभाव हुआ कि पाणिनिय वैयाकरणों ने भी अष्टाध्यायी की प्रक्रिया पद्धति से पठन-पाठन की नयी प्रणाली का अविष्कार किया। सोलहवीं शताब्दी के बाद तो पाणिनीय व्याकरण की समस्त पठन-पाठन प्रक्रिया ग्रन्थानुसार होने लगी। सूत्रपाठ, क्रमानुसारी पठन-पाठन शनैः शनैः उच्छिन्न हो गया । अष्टाध्यायी क्रम से पाणिनीय व्याकरण का अध्ययन प्रायः लुप्त हो गया। आचार्य हेमचन्द्र के व्याकरण की पहली विशेषता यह है कि उन्होंने व्याकरण से सम्बद्ध सभी अङ्गों का प्रवचन स्वयं ही किया है । आचार्य हेमचन्द्र
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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