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आचार्य हेमचन्द्र
साधारण तक पहुँच न सका। स्वयं जैन सम्प्रदाय में भी साधारण बौद्धिक स्तर के लोग आचार्य हेमचन्द्र के विषय में अनभिज्ञ हैं । किन्तु आचार्य हेमचन्द्र का कार्यं तो सम्प्रदायातीत और सर्वजन हिताय रहा है । और इस दृष्टि से वे अन्य सामान्य जन, आचार्यो एवं कवियों से कहीं बहुत अधिक सम्मान एवं श्रद्धा के
अधिकारी हैं ।
भारतीय इतिहास में १२ वीं शताब्दी अर्थात् हेमचन्द्र-युग जैन संस्कृति के जयघोष का युग है । इस समय तक धर्म, आचार और चिन्तन के क्षेत्रों को नियमित और निर्देशित करने वाले शास्त्रों और सूत्र-ग्रन्थों का प्रणयन हो चुका था एवं जन-जीवन की जान्हवी जैन आगमों की उपत्यका से उतर कर लोकभाषा की सपाट समतल भूमि पर विचरण करने लगी थी। विस्तार ने उसका वेग तथा भू- किल्विष कर्दम ने उसका नैर्मल्य कुछ क्षीण कर दिया था । आचारांगादि आगम सूत्रों के उभयतटस्पर्शी तुङ्ग कगारों के बीच उसका प्रवाह यद्यपि अपेक्षाकृत आबद्ध था, फिर भी उसकी शीतल मधुर पावन फुहार की आहलाद - दायिनी शक्ति में रंचमात्र की कमी न आने पायी थी ।
हेमचन्द्र सच्चे अर्थ में आचार्य | आचार्य किसे कहते हैं ? आचार्य आचार ग्रहण करवाता है, आचार्य अर्थों की वृद्धि करता है या बुद्धि बढ़ाता है । आचार्य के तीनों धर्मों का समावेश इसमें होता है । आजकल की परिभाषा के अनुसार-आचार्य शिष्य वर्ग को शिष्टाचार तथा सद्वर्तन सिखाता है । विचारों की वृद्धि करता है । जो इस प्रकार बुद्धि की वृद्धि करता है । जो चरित्र तथा बुद्धि का विकास करने में समर्थ हो; वह आचार्य है । इस अर्थ में आचार्य हेमचन्द्र गुजरात के एक प्रधान आचार्य हो गये, यह निःसन्देह है । यह बात उनके जीवनकार्य का और लोक में उसके परिणाम का इतिहास देखने से स्पष्ट हो जाती है । आचार्य के सभी गुण हेमचन्द्र में विद्यमान थे ।
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संस्कृत साहित्य और विक्रमादित्य के इतिहास में जो स्थान कालिदास का और श्री हर्ष के दरबार में जो स्थान बाणभट्ट का है, प्रायः वही स्थान १२ वीं शताब्दी में चौलुक्य वंशोद्भव सुप्रसिद्ध गुर्जर नरेन्द्र शिरोमणि सिद्धराज जयसिंह के इतिहास में श्री हेमचन्द्राचार्य का है । आचार्य हेमचन्द्र अनेक विद्याओं तथा शास्त्रों में निष्णात थे । श्री सोमप्रभूसूरि ने शतार्थकाव्य में इनका गौरवपूर्वक उल्लेख किया है - " विद्यांभोनिधि मंथ मंदर गिरिः श्री हेमचन्द्रो गुरुः" । ग्रन्थों की सर्वांगपूर्णता, वैज्ञानिकता और सरलता की दृष्टि से इनका स्थान अद्वितीय है । निखिलशास्त्र निपुणता तथा बहुज्ञता के कारण उन्होंने कलिकाल