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________________ अध्याय: ७ उपसंहार भारतीय साहित्य को हेमचन्द्र की देन आचार्य हेमचन्द्र की बहुमुरवी प्रतिभा नमोऽतु हेमचन्द्राय विशदा यस्य धी-प्रभा विकासयति सर्वाणि शास्त्राणि कुमुदानिव ॥१॥ कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र - जिन्हें पश्चिमी विद्वान् आदरपूर्वक 'ज्ञान का सागर' (Ocean of Knowledge) कहते हैं - संस्कृत जगत् में विशिष्ट स्थान रखते हैं । संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश साहित्य के मूर्धन्य प्रणेता, आचार्य हेमचन्द्र का व्यक्तित्व जितना गौरवपूर्ण है, उतना ही प्रेरक भी है। 'कलिकालसर्वज्ञ' उपाधि से उनके विशाल एवं व्यापक व्यक्तित्व के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है । न केवल अध्यात्म एवं धर्म के क्षेत्र में अपितु साहित्य एवं भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में भी उनकी प्रतिभा का प्रकाश समान रूप से विस्तीर्ण हुआ। इनमें एक साथ ही वैयाकरण, आलङकारिक, दार्शनिक, साहित्यकार, इतिहासकार, पुराणकार, कोषकार, छन्दोऽनुशासक, धर्मोपदेशक और महान् युगकवि का अन्यतम समन्वय हुआ है। आचार्य हेमचन्द्र का व्यक्तित्व सार्वकालिक, सार्वदेशिक एवं विश्वजनीन रहा है, किन्तु दुर्भाग्यवश अभीतक उनके व्यक्तित्व को सम्प्रदाय-विशेष तक ही सीमित रखा गया। सम्प्रदायरूपी मेघों से आच्छन्न होने के कारण इन आचार्य सूर्य का आलोक सम्प्रदायेतर जन
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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