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आचार्य हेमचन्द्र
कुन्दकुन्द, सिद्धसेन, अकलंक, विद्यानन्द, हरिभद्र, यशोविजय आदि के रूप में विकसित होती गयी' ।
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इसी ज्ञान की चेतना को आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी तर्कशुद्ध एवं तर्क सिद्ध तथा भक्ति युक्त सरस वाणी के द्वारा विकास की परमोच्च चोटी पर पहुँचा दिया । इन्होंने पुरानी जड़ता को जड़मूल से उखाड़ फेंक दिया, एवं भात्मविश्वास का सञ्चार किया । और इस प्रकार आचार्य हेमचन्द्र के ग्रन्थों ने जैन धर्म के साहित्य में समृद्धि तो की है, साथ ही इसमें उत्कृष्टता लाये । जैन धर्म के साहित्य में उनके ग्रन्थों का स्थान अपूर्व है । और उनके ग्रन्थों के कारण ही जैन धर्म गुजरात में तो दृढमूल हुआ ही भारतवर्ष में सर्वत्र, विशेषतः मध्यप्रदेश में, जैन धर्म के प्रचार एवं प्रसार में आचार्य हेमचन्द्र तथा उनके ग्रन्थों अभूतपूर्व योगदान किया है । इस दृष्टि से जैन धर्म के साहित्य में आचार्य हेमचन्द्र के ग्रन्थों का स्थान अमूल्य हैं ।
१ - जैन दर्शन - मुनि श्री न्याय विजय जी - प्राक्कथन ; शान्तिलाल