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________________ दार्शनिक एवं धार्मिक-ग्रन्थ १५७ उग्र पुण्य का फल भी इस जन्म में मिल सकता है। जैन दर्शन के अनुसार कर्म की बध्यमान, सत् और उदयमान अवस्थाएँ मानी गयी है। इन्हें क्रमशः बन्ध, सत्ता और उदय कहते हैं। योगसूत्र में क्रमश: क्रियमाण, सञ्चित, तथा प्रारब्ध नाम से इन्हीं अवस्थाओं का वर्णन किया नया है। कर्मवाद के बाद बन्ध और मोक्ष के विषय में भी दोनों के विचार एक से मालूम पड़ते हैं । कर्म का आत्यन्तिक क्षय होना ही मोक्ष है । ईश्वरता और मुक्तता एक ही है । पातञ्जल योग के अनुसार चित्तवृत्तियों के निरोध के द्वारा आत्मा बन्धनमुक्त होकर आत्म-साक्षात्कार का अनुभव करती है। कर्मबन्ध से छूट जाना ही मोक्ष है। पातञ्जल योग में यम-नियम, ध्यान, धारणा द्वारा साधक असंप्रज्ञात समाधि तक पहुंचता है। वहाँ पहुँच जाने पर योगी समस्त विषय संसार से मुक्त होता है । इस अवस्था में आत्मा विशुद्ध चैतन्य स्वरूप में रहती है और अपने कैवल्य या मुक्तावस्था के प्रकाश का आनन्द लेती है। इस अवस्था को प्राप्त करने पर पुरुष सभी दुःखों से मुक्ति पा जाता है । इस अवस्था को धर्ममेध भी कहते हैं क्योंकि वह योगी के ऊपर कैवल्य या मुक्ति की वर्षा करता है। __ आचार्य हेमचन्द्र भी प्रायः इसी प्रकार मुक्तावस्था का वर्णन करते हैं। जिस प्रकार ईन्धन शेष न रहने पर अथवा ईन्धन का सम्बन्ध समाप्त हो जाने पर आग स्वयमेव बुझ जाती है, उसी प्रकार मन का उपर्युक्त क्रम से अणु पर पूर्ण रूप से स्थिर होते ही चाञ्चल्य दूर हो जाता है और वह पूर्ण रूप से शान्त बन जाता है । केवल ज्ञान, सर्वज्ञता प्रकट होती है । आगे योगशास्त्र की समाप्ति करते हुए आत्मानन्द की अनुभूति का वर्णन आचार्य हेमचन्द्र वैदिक दर्शन के समान ही करते हैं। मोक्ष हो या न हो, परन्तु चित्त की स्थिर दशा में परमानन्द का संवेदन होता है। जिसके आगे समग्र सुख मानों कुछ भी नही हैं, ऐसा प्रतीत होता हैं ।(१२।५१) ___ इस मोक्षावस्था को प्राप्त करने के लिए जो उपाय या साधन बतलाये हैं उनमें भी पातञ्जल योगसूत्र तथा हेमचन्द्र के 'योगशास्त्र' में पर्याप्त साम्य दिखलायी देता है । आत्मोन्नति के साधन रूप में पातञ्जल योग की महत्ता को प्रायः सभी भारतीय दर्शनों ने स्वीकार किया है। जब तक मनुष्य का चित्त या अन्तःकरण निर्मल और स्थिर नहीं होता तब तक उसे धर्म के तथ्य का सम्यक ज्ञान नहीं हो सकता। आत्मशुद्धि के लिए योग ही सर्वोत्तम साधन है । इससे शरीर ओर मन की शुद्धि हो जाती है । सभी भारतीय दर्शन अपने-अपने सिद्धान्तो को यौगिक रीति से ध्यान, धारणा आदि के द्वारा अनुभव करने के लिए
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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